हरितक्रान्ति की दिशा में एक क्रान्तिकारी पहल
जीरो बजट कृषि पर कार्यशाला का आयोजन
लखनऊ : ऐमरन फाउण्डेशन और श्रमिक भारती के सहयोग से हरित क्रान्ति की दिशा में एक क्रान्तिकारी पहल की गयी है। इसके अन्तर्गत शनिवार को यहां जीरो बजट कृषि पर एक कार्यशाला आयोजित की गयी जिसमें उन्नत कृषि की तकनीकों को सिखाया गया। ऐमरन फाउण्डेशन की अध्यक्ष रेणुका टण्डन ने इस कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए कहा कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती के लिए आज आयोजित यह कार्यशाला कृषि में होने वाली रासायनिक खेती का बेहतर विकल्प है। यह आज होने वाले जलवायु परिवर्तन को भी रोकने में कारगर सिद्ध हुई है। प्राकृतिक खेती का सिद्धान्त कृषि विज्ञान के सिद्धान्तों के अनुरूप है। इस खेती की विशेषता यह है कि यह कृषि क्षेत्र में नवीनतम वैज्ञानिक खोजों पर आधारित है। साथ ही यह भारतीय परम्परा के भी अनुरूप है।
उन्होंने बताया कि अप्रैल 2018 में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने विश्व के सभी देशों से यह आग्रह किया कि वह खाद्य सुरक्षा एवं पर्यावरण के संरक्षण के दोहरे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एग्रोकोलॉजी को अपनाएं। एग्रोकोलॉजी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह विज्ञान कृषि उत्पादन प्रणालियों से सम्बन्धित पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं का व्यवस्थित अध्ययन करना। और इसमें खेती से होने वाली पर्यावरणीय हानि चाहेे प्रदूषण हो, या वनों या वन्य जीवों की क्षति या अन्य कोई दुष्प्रभाव को कम करने के उपायों को विकसित करने पर भी बल देता है।
जीरो बजट कृषि उपायों को बताते हुए रेणुका टण्डन ने कहा कि इसके लिए चार महत्वपूर्ण बिन्दुओं का पालन करना आवश्यक है। जिसमें बीजामृत— इसमें स्थानीय गोबर और गोमूत्र का उपयोेग कर बीजों का उपचार किया जाता है। जीवामृत— इसमें बिना किसी उर्वरक और किटनाशकों को गोबर और गोमूत्र से टीका बनाया जाता है। मल्चिंग— इसमें मिट्टी में अनुकूल माइक्रोलाइमेन्ट को सुनिश्चित करना है और भूमि की नमी का संरक्षण व भूमि की उर्वरा व स्वास्थ्य की वृद्धि को चिन्हित करना है और चौथा बिन्दू वफासा— जिसमें मिट्टी की जुताई और वातन का संवर्धन,यह मृदा की जलधारिता क्षमता को बढ़ाता है और सूक्ष्म जीवों के क्रियाकलापों को सक्रिय करता है जो मिट्टी में पौधों के भोजन तत्वों को तैयार करता है। किसानों की आय में वृद्धि के उपायों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि किसान एक फसल के साथ अन्य फसल भी बोेये। जैसे- गेहूं के साथ अल्सी, चना व मेथी को बोया जा सकता है। जिससे किसानोें को एक खर्च में चार फसलों के फायदे मिल सकते हैं।
ऐमरन फाउण्डेशन और श्रमिक भारतीय के सहयोग से सम्पन्न इस कार्यशाला में सैकड़ों किसानों विशेषकर महिला किसानों ने भाग लिया और शून्य बजट खेती का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह दोनों संस्था किसानों के हित में लगातार कार्य कर रही हैं। ऐमरन फाउण्डेशन का मुख्य उद्देश्य किसानों को न्यूनतम/ शून्य लागत पर रासायन युक्त कृषि को सुनिश्चित करना और उनकी आय में निरन्तर वृद्धि करना है इस अवसर पर ऐमरन फाउण्डेशन के सदस्य और श्रमिक भारतीय के राणा सिंह परिहार मौजूद थे।