उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की रामसनेसीघाट में जिला प्रशासन ने एक 100 वर्ष पुरानी मस्जिद के खिलाफ सख्त कार्रवाई है। दरअसल, जिला प्रशासन ने इस मस्जिद को ढहा दिया है। प्रशासन की इस कार्यवाही के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। इन मुस्लिम संस्थाओं ने सूबे की सत्तारूढ़ योगी सरकार से इस मामले में सम्मिलित अधिकारियों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई करने की मांग की है। साथ ही मस्जिद का दोबारा निर्माण कराने की मांग की है।
मस्जिद तोड़े जाने से मुस्लिम समुदाय खफा
एक न्यूज पोर्टल से मिली जानकारी के अनुसार, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यवाहक महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने एक बयान जारी कर कहा कि बोर्ड ने इस बात पर नाराजगी का इजहार किया है कि रामसनेहीघाट तहसील में स्थित गरीब नवाज मस्जिद को प्रशासन ने बिना किसी कानूनी औचित्य के सोमवार रात पुलिस के कड़े पहरे के बीच शहीद कर दिया है।
रहमानी ने कहा कि यह मस्जिद 100 साल पुरानी है और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में इसका इंद्राज भी है। इस मस्जिद के सिलसिले में किसी किस्म का कोई विवाद भी नहीं है। मार्च के महीने में रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी ने मस्जिद कमेटी से मस्जिद के आराजी से संबंधित कागजात मांगे थे।
इस नोटिस के खिलाफ मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी और अदालत ने समिति को 18 मार्च से 15 दिन के अंदर जवाब दाखिल करने की मोहलत दी थी, जिसके बाद एक अप्रैल को जवाब दाखिल कर दिया गया, लेकिन इसके बावजूद बगैर किसी सूचना के एकतरफा तौर पर जिला प्रशासन ने मस्जिद शहीद करने का जालिमाना कदम उठाया है।
मौलाना सैफुल्लाह ने बयान में कहा कि हमारी मांग है कि सरकार हाईकोर्ट के किसी सेवारत न्यायाधीश से इस वाकये की जांच कराए और जिन अफसरों ने यह गैरकानूनी हरकत की है उनको निलंबित किया जाए। साथ ही मस्जिद के मलबे को वहां से हटाने की कार्रवाई को रोककर और ज्यों की त्यों हालत बरकरार रखे। मस्जिद की जमीन पर कोई दूसरी तामीर करने की कोशिश न की जाए। यह हुकूमत का फर्ज है कि वह इस जगह पर मस्जिद तामीर कराकर मुसलमानों के हवाले करे।
इस बीच, जिलाधिकारी आदर्श सिंह ने मस्जिद और उसके परिसर में बने कमरों को ‘अवैध निर्माण’ करार देते हुए एक बयान में कहा कि इस मामले में संबंधित पक्षकारों को पिछली 15 मार्च को नोटिस भेजकर स्वामित्व के संबंध में सुनवाई का मौका दिया गया था। लेकिन परिसर में रह रहे लोग नोटिस मिलने के बाद फरार हो गए जिसके बाद तहसील प्रशासन ने 18 मार्च को परिसर पर कब्जा हासिल कर लिया।
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मामले में दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए गत दो अप्रैल को उसे निस्तारित कर दिया। इससे यह साबित हुआ कि वह निर्माण अवैध है। इस आधार पर रामसनेहीघाट उप जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में न्यायिक प्रक्रिया के तहत वाद दायर किया गया। इस प्रकरण में न्यायालय द्वारा पारित आदेश का 17 मई को अनुपालन करा दिया गया।
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रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी दिव्यांशु पटेल ने दावा किया कि तहसील परिसर में स्थित उस भवन को हाईकोर्ट के आदेश पर अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत ढहाया गया है। इस बीच, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है। बोर्ड के अध्यक्ष जुफर अहमद फारूकी ने एक बयान में कहा, “प्रशासन ने खास तौर पर रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर तहसील परिसर के पास स्थित 100 साल पुरानी एक मस्जिद को ध्वस्त कर दिया है। मैं इस अवैध और मनमानी कार्रवाई की कड़ी निंदा करता हूं।
उन्होंने कहा कि यह कार्रवाई न सिर्फ कानून के खिलाफ है बल्कि शक्तियों का दुरुपयोग भी है। साथ ही हाईकोर्ट द्वारा गत 24 अप्रैल को पारित आदेश का खुला उल्लंघन है। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उस मस्जिद की बहाली, घटना की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हाईकोर्ट में जल्द ही मुकदमा दायर करेगा।