कांग्रेस में फिर लौटेगा 1996 का वक्त? आखिर क्या है गुलाम नबी आजाद की रणनीति

50 साल बाद कांग्रेस को अलविदा कह नई पार्टी बनाने का एलान करने वाले गुलाम नबी आजाद क्या कांग्रेस में बंटवारे का प्लान बना रहे हैं? क्या आजाद 1996 में तिवारी कांग्रेस की तर्ज पर अपने नेतृत्व में एक नई कांग्रेस खड़ी करने का सपना देख रहे हैं? आजाद अपने साथ किन अन्य नेताओं को तोड़ेंगे, ये तो अभी साफ नहीं है, लेकिन कांग्रेस को लगता है कि वो ये कोशिश कर सकते हैं. कांग्रेस ने उसी के मद्देनजर डैमेज कंट्रोल की रणनीति पहले से ही तैयार कर ली है.

1996 में नरसिम्हा राव से मतभेद के बाद नारायण दत्त तिवारी और अर्जुन सिंह सरीखे नेताओं ने अलग पार्टी बनाई थी. 1996 का चुनाव भी लड़ा, लेकिन बड़ी सफलता नहीं मिली और सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान थामते ही पार्टी में वापस आ गए. कांग्रेस को लगता है कि हाल ही में पार्टी छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद भी कुछ वैसा ही कदम उठाने की फिराक में हैं.

आनंद शर्मा, शशि थरूर, भूपेंद्र हुडा, मनीष तिवारी और बिहार से आने वाले राज्य सभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को साथ लेकर आजाद कांग्रेस को बड़ा झटका देने की ताक में हैं. हालांकि, ये तुरंत नहीं होने जा रहा है और आजाद भी पहले रीजनल पार्टी बनाकर शुरुआत करना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है 2024 लोकसभा चुनाव से पहले आजाद ये कोशिश किसी भी वक्त कर सकते हैं. लिहाजा अंदरखाने इससे निपटने की तैयारी भी शुरू कर दी गई है.

कांग्रेस के सामने पहले ही नया अध्यक्ष चुनने की चुनौती है. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राहुल गांधी को अंतिम समय तक मनाने की कोशिश में है कि वो पार्टी का नेतृत्व संभाल लें और अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ें. इसके पीछे उनका तर्क है कि गांधी परिवार से अलग किसी और को कमान देने से पार्टी में टूट बढ़ सकती है. अशोक गहलोत या वेणुगोपाल या मल्लिकार्जुन खड़गे सरीखे किसी को भी कमान देने से बाकी समकालीन नेताओं में असंतोष बढ़ सकता है और वे पार्टी छोड़ सकते हैं. आजाद ने पहले ही कह दिया है कि गांधी परिवार अपनी ‘कठपुतली’ को अध्यक्ष बनवाने के लिए फर्जी चुनाव करवा रहा है.

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राहुल गांधी को ये तर्क भी दिया जा रहा है कि अगर किसी गैर-गांधी को भी अध्यक्ष बनाया जाएगा, तो भी आजाद और बीजेपी उसे गांधी परिवार का कठपुतली ही कहेंगे और पार्टी में टूट भी बढ़ सकती है. लिहाजा इन सब बातों और खतरों से बचने के लिए राहुल गांधी को ही नेतृत्व करना चाहिए. बहरहाल आजाद खुद के अलावा किन-किन नेताओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब होंगे ये वक्त तय करेगा, लेकिन उसकी संभावना को देखते हुए कांग्रेस के मैनेजर किनारे पर बैठे नेताओं को तरजीह देने, उनसे संवाद करने और उनको पार्टी में ही बने रहने के लिए मनाने की योजना बना चुके हैं.