कौन हैं सलमान रुश्दी? आखिर क्यों मचा है उनकी किताब The Satanic Verses को लेकर बवाल?

भारतीय मूल के प्रसिद्ध लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में हमला (Salman Rushdie Attacked) हुआ है. यह घटना तब की है, जब वह एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे. हमले के फौरन बाद सलमान रुश्दी को अस्पताल (Salman Rushdie Hospitalised) में भर्ती कराया गया, जहां फिलहाल उनकी स्थिति नाजुक (Salman Rushdie Critical) बनी हुई है. आइए जानते हैं कौन हैं सलमान रुश्दी और क्या है उनकी किताब ‘सैटनिक वर्सेज’ का विवाद-

सलमान रुश्दी कौन हैं?

सलमान रुश्दी का जन्म 19 जून 1947 को मुंबई में हुआ था. रुश्दी का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ लेकिन वह खुद को धर्म से अलग रखते थे. वह खुद को एक नास्तिक बताते हैं. रुश्दी को पहली बार लोकप्रियता मिली साल 1981 में आये उनके उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ (Midnight’s Children) से. उसी साल सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार ‘बुकर प्राइज’ (Man Booker Prize) से सम्मानित किया गया था. यहां तक तो ठीक था, लेकिन उनके चौथे उपन्यास ‘द सैटेनिक वर्सेज’ (The Satanic Verses) ने आते ही बवाल मचा दिया था. सलमान रुश्दी 80 के दशक से ही इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं. उन्हें पहले भी जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं.

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What Is The Satanic Verses Controversy?

‘द सैटेनिक वर्सेज’ पर क्या है विवाद?

सलमान रुश्दी के 1988 में आये उपन्यास ‘द सैटेनिक वर्सेज’ (The Satanic Verses) को लेकर अलग-अलग देशों, खासकर इस्लामिक देशों में विरोध-प्रदर्शन हुए. रुश्दी के पुतले फूंके गए. किताब की प्रतियां जलायी गईं. भारत और ईरान सहित कई देशों में यह किताब बैन कर दी गई. भारतीय मूल के जानेमाने लेखक सलमान रुश्दी तीन दशक से ज्यादा समय से इस्लामिक कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं. उन्हें पहले भी जान से मारने की धमकियां मिल चुकी हैं. एक समय तो हालात ऐसे बन गए थे कि लगभग एक दशक तक उन्हें गुमनामी की जिंदगी जीना पड़ा. तब वह न कहीं सार्वजनिक तौर पर दिखते थे, न बहुत लोगों से मिलते-जुलते ही थे. साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों में शिरकत करने की बात तो वह तब सोच ही नहीं सकते थे. वह दौर था- 1989-90 का, जब ईरान के सर्वोच्च धार्मिक गुरु अयातुल्लाह खुमैनी ने उनकी हत्या किये जाने पर 30 लाख डॉलर का इनाम घोषित कर रखा था. वजह थी- उनकी ‘द सैटेनिक वर्सेज’ (The Satanic Verses). कहते हैं कि यह उपन्यास इस्लाम, पैगंबर मुहम्मद और इस्लामिक परंपराओं की कड़ी आलोचना करती है. यही बात इस्लामिक चरमपंथियों को नागवार गुजरी थी.