पाकिस्तान के जिगरी तुर्की ने उठाया कश्मीर का मुद्दा, विदेश मंत्री जयशंकर के जवाब ने कर दी बोलती बंद

कश्मीर के मसले को लेकर मुस्लिम देशों को साथ लेकर लॉबिंग करने में लगा है। जिसमें ईरान, तुर्की, मलेशिया जैसे देश शामिल हैं और उन्हें चीन का भी समर्थन हासिल है। पाकिस्तान की ये लगातार कोशिश रहती है कि वो किस तरह से कश्मीर के मसले को वैश्विक मंच पर उठाए। इस तरह की हिमाकत पाकिस्तान ने कई बार की भी है। पाकिस्तान के दोस्त तुर्की कुछ इसी तरह की हरकत संयुक्त राष्ट्र के मंच पर दोहराने की कोशिश की लेकिन कश्मीर का मुद्दा उठाना उसके लिए बहुत भारी पड़ गया। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को भारत के विदेश मंत्री ने करारा जवाब दिया है।

तुर्की के राष्ट्रपति की पाकिस्तानी जुबान

रजब तैयब एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्च स्तरीय सत्र में वैश्विक नेताओं के नाम अपने संबोधन में एक बार फिर जम्‍मू- कश्मीर का मुद्दा उठाया। एर्दोआन ने सामान्य चर्चा में अपने संबोधन में कहा, हमारा मानना है कि कश्मीर को लेकर 74 साल से जारी समस्या को दोनों पक्षों को संवाद और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के जरिये हल करना चाहिए। अतीत में भी एर्दोगान ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया था जिसपर भारत ने आपत्ति जताई थी। पिछले साल पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान भी कश्मीर का मुद्दा उठाने पर उस समय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि एर्दोआन की टिप्पणी न तो इतिहास की समझ और न ही कूटनीति के संचालन को दर्शाती है और इसका तुर्की के साथ भारत के संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा।

जयशंकर ने दिया मुंहतोड़ जवाब

एस जयशंकर ने साइप्रस के अपने समकक्ष निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान जयशंकर ने साइप्रस के संबध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रासंगिक प्रस्तावों का पालन करने की आवश्यकताओं पर जोर दिया। जयशंकर ने  क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ अपनी मुलाकातों के बारे में ट्वीट करते हुए कहा कि हम आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। सभी को साइप्रस के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का पालन करना चाहिए।

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क्या है तुर्की-साइप्रस विवाद

साइप्रस में लंबे समय से चल रहे संघर्ष की शुरुआत 1974 में यूनान सरकार के समर्थन से हुए सैन्य तख्तापलट से हुई थी। इसके बाद तुर्की ने यूनान के उत्तरी हिस्से पर आक्रमण कर दिया था। तुर्की के 35 हजार सैनिक इस क्षेत्र पर तैनात हैं।  इस घटना के बाद से साइप्रस 2 हिस्सों में बंटा हुआ है। इसे केवल तुर्की ने मान्यता दी है। जबकि, ग्रीक नस्ल वाले साइप्रस को यूएन सहित पूरी दुनिया स्वीकार करती है।