अध्यक्ष बनते ही गहलोत के सामने होंगी ये सात बड़ी चुनौतियां, यहां होगी ‘पहली परीक्षा’

कांग्रेस के नए अध्यक्ष की रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सबसे आगे चल रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी भी अपने कुशल रणनीतिकारों में से एक अशोक गहलोत पर अपना दांव खेलना चाहती है। अगर अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो कमजोर हो चुकी पार्टी में फिर से जान फूंकना सबसे बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा पार्टी के बाहर जितनी चुनौतियां हैं, उतनी पार्टी के अंदर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। आइए जानते हैं कि अगर अशोक गहलोत अध्यक्ष बने तो उनके सामने क्या-क्या चुनौतियां होंगी ?

पार्टी में गुटबाजी खत्म करना चुनौती

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा देश की सबसे पुरानी पार्टी एक के बाद एक विधानसभा चुनाव भी हार गई। कई नाराज विधायक पार्टी छोड़कर चले गए। कार्यकर्ताओं में निराशा है। ऐसे में कार्यकर्ताओं में जोश भरना सबसे बड़ी चुनौती होगी। हर लेवल पर गुटबाजी को खत्म करनी होगी।

असंतुष्ट नेताओं को साधना होगा

पहली बार कांग्रेस में गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष बनेगा। सीएम अशोक गहलोत अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालते हैं तो वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ तालमेल बनाकर चलना होगा। इसके साथ ही असंतुष्ट नेताओं के समूह जी 23 को साधना भी गहलोत के लिए महत्वपूर्ण होगा। जी 23 में शामिल नेता हमेशा व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग करते रहे हैं।

राजस्थान में आंतरिक कलह से होगा निपटना

इसके अलावा गहलोत को राजस्थान में आंतरिक कलह से निपटना सबसे मुश्किल होगा। अगर अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनने पर सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनते हैं तो गहलोत को अपने समर्थकों को समझाना मुश्किल होगा। कई विधायक नाराज हो सकते हैं। अगर गहलोत ने पायलट को सीएम बनने से रोका तो पार्टी में फूट पड़ सकती है। एक बार फिर पायलट गुट बगावत कर सकता है। ऐसे में बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपने ही गृह राज्य में कलह नहीं रोक पाने की स्थिति में गहलोत को फेल माना जाएगा।

हिंदी पट्टी में पार्टी के प्रदर्शन को सुधारना होगा

अशोक गहलोत एक हिंदी भाषी राज्य के कुशल राजनीतिज्ञ हैं। हिंदी पट्टी में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की दिशा में उन्हें ठोस कदम उठाने होंगे। कभी करीब छह दशकों तक राज्य करने वाली पार्टी की हालत फिलहाल खस्ताहाल है। ऐसे में अगले चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन सुधारना सबसे बड़ी चुनौती होगी।

भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति का क्या होगा जवाब

सबसे बड़ी चुनौती नए अध्यक्ष के सामने भाजपा से मुकाबला करने की होगी। भाजपा राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर चुनावी मैदान में उतरती आई है और कांग्रेस को घेरते आई है। ऐसे में अशोक गहलोत कांग्रेस की कमान संभालते हैं तो उन्हें भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति पर काम करना होगा।

गुजरात और हिमाचल चुनाव में होगी पहली परीक्षा

वहीं 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को सुधारना सबसे बड़ी चुनौती होगी। गुजरात और हिमाचल के चुनावों में नए अध्यक्ष की पहली परीक्षा होगी। वहीं राजस्थान में हर साल सरकार बदलने का ट्रेंड रहा है। ऐसे में बतौर कांग्रेस अध्यक्ष गहलोत को अपने गृह राज्य में फिर से सरकार बनाने की चुनौती होगी।

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पिछड़ा और दलित वोट बैंक पर साधना होगा निशाना

अशोक गहलोत एक ओबीसी नेता हैं। वे माली समुदाय से आते हैं। ओबैसी वोट पर निशाना साधना गहलोत के लिए आसान हो सकता है लेकिन उन्हें पिछड़ों और दलित समुदाय के वोट हासिल करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। राष्ट्रपति चुनाव से लेकर राज्यों के चुनाव में भाजपा ने पिछड़ों और दलित की पार्टी की इमेज बना ली है। ऐसे में भाजपा के इस इमेज को तोड़कर ही पिछड़ों और दलित समुदाय का वोट ज्यादा से ज्यादा हासिल किया जा सकता है। इसके साथ ही राजस्थान में क्षत्रिय, जाट और ब्राह्मणों के वर्चस्व वाली राजनीति में पैठ बनाए रखना होगा।