पांडवों ने कराया था इस शनि मंदिर का निर्माण, 7 फीट ऊंचाई की पर है शनिदेव

नौ ग्रहों में सबसे क्रूर माने जाने वाले शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है क्योंकि वे लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दंड देते हैं। शनिदेव, अच्छे कर्म करने वालों का भरपूर साथ देते हैं तो वहीं बुरे कर्म करने वालों को बुरी से बुरी सजा भी।

वैसे तो देशभर में शनिदेव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं जैसे- महाराष्ट्र का शनि शिंगणापुर, उत्तर प्रदेश के कोसीकलां का शनि मंदिर, मध्य प्रदेश के मुरैना का शनिश्चरा मंदिर, दिल्ली के फतेहपुर बेरी का शनिधाम मंदिर आदि। लेकिन आज हम शनिदेव के ऐसे अनोखे मंदिर की बात करने जा रहे हैं जो जहां आज भी एक अखंड ज्योति मौजूद है।

7 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है यह शनि मंदिर

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के खरसाली गांव  में स्थित है शनिदेव का एक प्राचीन मंदिर जो समुद्र तल से लगभग 7 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर पांच मंजिला है जिसके निर्माण में पत्थर और लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवो ने करवाया था। शनिदेव की कांस्य से बनी मूर्ति मंदिर के सबसे ऊपर वाली मंजिल पर स्थित है।

मंदिर में जलती है अखंड ज्योति

खरसाली में स्थित इस मंदिर का अपना अलग ही महत्व है। शनि मंदिर में एक अखंड ज्योति मौजूद है और कहा जाता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव को हिंदू देवी यमुना का भाई माना जाता है।

खरसाली में ही मां यमुना का मंदिर यमुनोत्री भी है और यमनोत्री धाम से लगभग 5 किलोमीटर पहले पड़ता है शनिदेव का यह मंदिर। हर साल इस शनि मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार हर साल मई के पहले हफ्ते में अक्षय तृतीय पर शनिदेव अपनी बहन यमुना से यमुनोत्री धाम में मुलाकात करके खरसाली लौट आते हैं। फिर दिवाली के 2 दिन बाद जब भाईदूज का त्योहार आता है तो अपनी बहन यमुना को अपने साथ खरसाली ले जाते हैं क्योंकि सर्दियों में (नवंबर से अप्रैल) यमुनोत्री धाम के कपाट बंद हो जाते हैं इसलिए देवी यमुना की मूर्ति पूजा करने के लिए शनि देव के खरसाली स्थित मंदिर में लाई जाती है।