दिल्ली की शराब नीति के मामले में पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद आठ विपक्षी दलों की ओर से लिखा इस आशय का पत्र कई प्रश्न खड़े करता है कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। इस पत्र में आम आदमी पार्टी के साथ सात अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी हस्ताक्षर किए हैं। सबसे पहले तो यही प्रश्न उठता है कि आखिर आम आदमी पार्टी को छोड़कर केवल सात विपक्षी दल ही इस नतीजे पर क्यों पहुंचे कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है?
इसके अतिरिक्त यह प्रश्न भी उठता है कि तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस पत्र पर हस्ताक्षर कैसे कर सकती हैं? क्या बंगाल के शिक्षक भर्ती घोटाले को अनदेखा कर दिया जाए? शिक्षकों की भर्ती में घोटाला किया गया और बेहद बेशर्मी के साथ किया गया, यह निष्कर्ष कलकत्ता उच्च न्यायालय का है। क्या तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य दल यह चाहते हैं कि देश की जनता यह विस्मृत कर दे कि शिक्षक भर्ती घोटाले में गिरफ्तार बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के यहां से करोड़ों की नकदी बरामद की गई थी? यदि तृणमूल कांग्रेस पार्थ चटर्जी को निर्दोष मानती है तो फिर उसने उन्हें पार्टी से निलंबित क्यों किया?
केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग की शिकायत करने वाले दलों की मानें तो मनीष सिसोदिया को बिना किसी प्रमाण गिरफ्तार किया गया। यदि ऐसा है तो अदालत ने उन्हें जमानत देने से मना करते हुए सीबीआइ के रिमांड पर क्यों भेजा? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यदि शराब नीति में कहीं कोई खामी नहीं थी तो फिर घोटाले का शोर मचते ही उसे वापस क्यों लिया गया? क्या विपक्षी दल इसकी जिम्मेदारी ले सकते हैं कि दिल्ली सरकार की ओर से वापस ली गई शराब नीति में कहीं कोई खामी नहीं थी और उससे शराब विक्रेताओं को कहीं कोई अनुचित लाभ नहीं मिल रहा था?
एक सवाल यह भी है कि क्या चिट्ठी लिखने वाले विपक्षी दलों के नेता मनीष सिसोदिया समेत जो अन्य नेता घपले-घोटालों के आरोप में केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं, उनके निर्दोष होने का प्रमाण दे सकते हैं? यह हैरानी की बात है कि विपक्षी नेताओं की चिट्ठी में उन लालू यादव का भी जिक्र है, जिन्हें चारा घोटाले में सजा सुनाई जा चुकी है।
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यह सही है कि ऐसी कोई सरकार नहीं, जिस पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप न लगता हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि राजनीतिक भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लग गई है। राजनीतिक भ्रष्टाचार एक कटु सच्चाई है। इसी प्रकार यह भी एक सच है कि राजनीतिक दल अपनी राजनीति चलाने के लिए धन का प्रबंध घपलों-घोटालों के जरिये भी करते हैं। इसी कारण नेताओं के घपले-घोटाले सामने आते रहते हैं।