राजद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने की सख्त टिप्पणी, केंद्र से पूछा बड़ा सवाल

राजद्रोह की संवैधानिकता को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कभी महात्मा गांधी, तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था समय

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की ज़रूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। यह याचिका सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी बोम्बतकरे ने दायर की है।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राजद्रोह कानून वापस नहीं लिया जाना चाहिए बल्कि कोर्ट चाहे तो नए सख्त दिशा-निर्देश जारी कर सकता है ताकि राष्ट्रीय हित में ही इस कानून का इस्तेमाल हो।

उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने पिछले 12 जुलाई को राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर एक दूसरी याचिका पर सुनवाई टाल दी थी। सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। यह याचिका मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल ने याचिका दायर की है।

याचिकाकर्ता की ओर से वकील तनिमा किशोर ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करती है। यह सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कानून की वैधता को बरकरार रखा था लेकिन अब इसके साठ साल बीतने के बाद ये कानून आज संवैधानिक कसौटी पर पास नहीं होता है।

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याचिका में कहा गया है कि भारत पूरे लोकतांत्रिक दुनिया में अपने को लोकतंत्र कहता है। ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, नाइजीरिया और युगांडा ने राजद्रोह को अलोकतांत्रिक करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों याचिकाकर्ता एक मुखर और जिम्मेदार पत्रकार हैं। वे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हैं। दोनों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कार्टून शेयर करने के लिए धारा 124ए के तहत राजद्रोह की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज किए गए हैं।