हाईकोर्ट के आदेश पर फूटा सुन्नी वक्फ बोर्ड का गुस्सा, खटखटाएगी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा

बिहार की पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को शताब्दी भवन से सटे बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड की जमीन पर निर्मित और राज्य अल्पसंख्यक कल्याण विभाग से वित्त पोषित चार मंजिला इमारत को एक महीने के भीतर गिराने का आदेश दिया है। इसके बाद बुधवार को बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते है। साथ ही कहा कि हम हाईकोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही अपील दायर करेंगे।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगी सुन्नी वक्फ बोर्ड

चेयरमैन ईरशादुल्लाह ने कहा कि वक्फ दान पर चलती है। इसके निर्माण कार्य के लिए जो भी पैसा लगा है, वह सभी दान धर्म में आस्था रखने वाले देशभर के लोगों ने दिया है। इस भवन के निर्माण का मूल मकसद था देशभर के जराइन लोग जो पटना आते हैं, उनके ठहरने की व्यवस्था हो सके।

उन्होंने कहा कि इस इमारत को बिहार भवन निर्माण की ओर से बनाया जा रहा था। हमारी ओर से दिये गए प्रस्ताव के बाद भवन निर्माण विभाग ने इसके निर्माण कार्य की शुरुआत 2019 में की थी। इस तीन मंजिला इमारत में केवल प्लास्टर का ही काम बचा है, पूरा निर्माण हो चुका है।

उन्होंने कहा कि जब इस इमारत के निर्माण की शुरुआत हुई थी, उस वक्त इस पर किसी तरह का रोक प्रशासन की ओर से नहीं लगाया गया। अब जब यह इमारत पूरी तरह से बन चुकी है, तो हाई कोर्ट ने इसे गिराने का आदेश दिया है।

14 मार्च को हाईकोर्ट ने लिया था स्वतः संज्ञान

जस्टिस अश्विनी कुमार सिंह, विकास जैन, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, राजेंद्र कुमार मिश्रा और चक्रधारी शरण सिंह की संविधान पीठ ने साल 2021 के 14 मार्च को इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था। वरिष्ठ वकील राजेंद्र नारायण को न्याय मित्र नियुक्त किया गया था, जबकि महाधिवक्ता ललित किशोर पेश हुए थे।

वरिष्ठ वकील पीके शाही, तेज बहादुर और मृगंक मौली ने वक्फ बोर्ड, भवन निर्माण निगम और हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व किया। प्रसून सिन्हा ने वक्फ एस्टेट की प्रबंध समिति के लिए व्यक्तिगत रूप से नगर निगम और खुर्शीद आलम का प्रतिनिधित्व किया।

उल्लेखनीय है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की जमीन पर हो रहे निर्माण कार्य को हाईकोर्ट ने बिहार बिल्डिंग बायलॉज, 2014 के अनुसार अवैध माना है। अदालत ने राज्य सरकार को उन सरकारी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने के लिए एक जांच आयोग का गठन करने का भी निर्देश दिया, जिन्होंने अवैध निर्माण की अनुमति दी थी। इस इमारत को बनाना जनता के 14 करोड़ रुपये की बर्बादी माना गया है।

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बिल्डिंग बायलॉज नंबर 21 में लिखा है कि राज्यपाल के घर, राज्य सचिवालय, विधानसभा, हाई कोर्ट और अन्य की सीमा से 200 मीटर के दायरे में 10 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले किसी भी भवन की अनुमति नहीं दी जाएगी।