पीएम मोदी ने सेंगोल को किया साष्टांग प्रणाम, अधीनम संतों की मौजूदगी में दिया सम्मान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नए संसद भवन का उद्घाटन कर दिया है। वैदिक विधि विधान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नए संसद भवन का उद्घाटन किया और देश को इसे समर्पित किया। इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु के अधीनम संतों द्वारा सौंपा गया सेंगोल भी नए संसद भवन में स्थापित किया। ऐतिहासिक राजदंड ‘सेंगोल’ को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के समीप स्थापित किया है। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने पारंपरिक परिधान में द्वार संख्या-एक से संसद भवन परिसर में प्रवेश किया।

वहीं जब सेंगोल को संसद भवन में स्थापना करने के लिए लेकए आया गया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा कदम उठाया जिससे सत्ता और संस्कृति का संगम होता हुआ नए संसद भवन में दिखा। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंगोल को साष्टांग प्रणाम किया और हाथ में पवित्र राजदंड लेकर वहां उपस्थित तमिलनाडु के विभिन्न अधीनमों के पुजारियों का आशीर्वाद लिया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उनका स्वागत किया। इसके बाद मोदी और बिरला ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। बता दें कि नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रमिकों का सम्मान भी किया जिन्होंने इस ऐतिहासिक इमारत के निर्माण में अपना अहम योगदान दिया है।

ऐसा है नया संसद भवन

टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड द्वारा निर्मित नए संसद भवन में भारत की लोकतांत्रिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए एक भव्य संविधान हॉल, सांसदों के लिए एक लाउंज, एक पुस्तकालय, कई समिति कक्ष, भोजन क्षेत्र और पर्याप्त पार्किंग स्थान होगा। त्रिकोणीय आकार की चार मंजिला इमारत 64,500 वर्ग मीटर में फैली है। इस इमारत के तीन मुख्य द्वार ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार हैं। इसमें विशिष्ट जन, सांसदों और आगंतुकों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार होंगे। नए भवन के लिए उपयोग की गई सामग्री देश के विभिन्न हिस्सों से लाई गई है। इमारत में इस्तेमाल सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र के नागपुर से मंगाई गई थी, जबकि लाल और सफेद बलुआ पत्थर राजस्थान के सरमथुरा से खरीदा गया था।

राष्ट्रीय राजधानी में लाल किले और हुमायूं के मकबरे के लिए बलुआ पत्थर भी सरमथुरा से प्राप्त किया गया था। केसरिया हरे पत्थर को उदयपुर से, लाल ग्रेनाइट को अजमेर के पास लाखा से और सफेद संगमरमर को राजस्थान के अंबाजी से खरीदा गया है। एक अधिकारी ने कहा, ‘‘एक तरह से पूरा देश लोकतंत्र के मंदिर के निर्माण के लिए एक साथ आया, जो एक प्रकार से ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की सच्ची भावना को दर्शाता है।’’ लोकसभा और राज्यसभा के कक्षों में फॉल्स सीलिंग के लिए स्टील का ढांचा केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीव से मंगाया गया है जबकि नई इमारत का फर्नीचर मुंबई में तैयार किया गया था। इमारत में पत्थर की जाली का काम किया गया है, जिसमें राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा का योगदान है।

अशोक स्तंभ के लिए सामग्री महाराष्ट्र के औरंगाबाद और राजस्थान के जयपुर से मंगाई गई थी जबकि लोकसभा और राज्यसभा कक्षों की विशाल दीवारों और संसद भवन के बाहरी हिस्से में लगे अशोक चक्र को मध्य प्रदेश के इंदौर से खरीदा गया था। नए संसद भवन में निर्माण गतिविधियों के लिए कंक्रीट मिश्रण बनाने के लिए हरियाणा के चरखी दादरी से ‘एम-सैंड’ यानी निर्मित रेत का उपयोग किया गया। एम-सैंड को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है क्योंकि यह बड़े कठोर पत्थरों या ग्रेनाइट को कुचलकर निर्मित होता है, न कि नदी के तल में निकर्षण द्वारा। निर्माण में इस्तेमाल ‘फ्लाई ऐश’ ईंटें हरियाणा और उत्तर प्रदेश से मंगाई गई थीं, जबकि पीतल के काम और पूर्वनिर्मित खाइयां गुजरात के अहमदाबाद से थीं। ‘फ्लाई ऐश’ एक बारीक पाउडर है जो तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। इसमें भारी धातु होते हैं और साथ ही पीएम 2.5 और ब्लैक कार्बन भी होते हैं।

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कुल 1280 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था

नए संसद भवन के लोकसभा कक्ष में 888 सदस्य और राज्यसभा कक्ष में 300 सदस्य आराम से बैठ सकते हैं। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होने पर कुल 1,280 सदस्यों को लोकसभा कक्ष में समायोजित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने 10 दिसंबर, 2020 को नए संसद भवन की आधारशिला रखी थी। पुराना संसद भवन 1927 में बनकर तैयार हुआ था। पुरानी इमारत को वर्तमान आवश्यकताओं के लिए अपर्याप्त पाया गया था। लोकसभा और राज्यसभा ने प्रस्ताव पारित कर सरकार से संसद के लिए एक नया भवन बनाने का आग्रह किया था। पुरानी इमारत ने स्वतंत्र भारत की पहली संसद के रूप में कार्य किया और यह संविधान को अपनाने की गवाह भी बनी। मूल रूप से ‘इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ में स्थित इस संसद भवन को ‘काउंसिल हाउस’ कहा जाता था। संसद भवन में 1956 में अधिक जगह की आवश्यकता को देखते हुए दो मंजिलों को जोड़ा गया था। वर्ष 2006 में, भारत की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत के 2,500 वर्षों को प्रदर्शित करने के लिए संसद संग्रहालय का निर्माण किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि वर्तमान भवन को कभी भी द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था और इसमें बैठने की व्यवस्था भी तंग थी। केंद्रीय कक्ष में केवल 440 लोगों के बैठने की क्षमता है और दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों के दौरान अधिक जगह की आवश्यकता महसूस की गई थी।