हरिद्वार। सोमवार यानि 20 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। इस बार पितृपक्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विनी मास की अमावस्या तिथि यानि 6 अक्टूबर तक रहेगा। हिंदू मान्यता के अनुसार यदि पूरे श्रद्धा भाव के साथ पितरों की पूजा अर्चना और तर्पण (श्राद्ध) करने से मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीवात्मा को मुक्ति प्रदान कर देते हैं।
ज्योतिषाचार्य पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री कें मुताबिक पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने और तर्पण देने का विशेष महत्व होता है। पितरों का तर्पण करने का मतलब उन्हें जल देना होता है। इसके लिए प्रतिदिन सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुंह करके बैठ जाएं। सबसे पहले अपने हाथ में कुछ जल, अक्षत, पुष्प लेकर दोनों हाथ जोड़कर अपने पितरों को ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। खासकर नदी के किनारे तर्पण करना विशेष महत्व रखता है।
इस दौरान अपने पितरों को नाम लेते हुए जब करते हुए उसे जमीन में या नदी में प्रवाहित करें। साथ ही अपने पितरों से सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त करें। पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है जिस तिथि पर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है। अगर, किसी मृत व्यक्ति के मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है, तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। पितरों के श्राद्ध के दिन अपने यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को भोज खिलाकर दान पुण्य करें। इसके अलावा भोजन को कौओं और कुत्तों को भी खिलाएं।
उन्होंने कहा कि पितरों के तर्पण के दौरान क्षमा याचना अवश्य करें। किसी भी कारण हुई गलती या पश्चाताप के लिए आप पितरों से क्षमा मांग सकते हैं। पितरों की तस्वीर पर तिलक कर रोजाना नियमित रूप से संध्या के समय तिल के तेल का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, साथ ही अपने परिवार सहित उनके श्राद्ध तिथि के दिन क्षमा याचना कर गलतियों का प्रायश्चित कर अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं।
पितृपक्ष में अपने पितरों के श्राद्ध के दौरान विशेष तौर पर ख्याल रखने की जरूरत है, जब आप श्राद्ध कर्म कर रहे हों तो कोई उत्साहवर्धक कार्य नहीं करें। घर में कोई शुभ कार्य नहीं करें। इसके अलावा मांस, मदिरा के साथ-साथ तामसी भोजन का भी सेवन परहेज करें। श्राद्ध में पितरों को नियमित भावभीनी श्रद्धांजलि का समय होता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा दिवंगत आत्मा हेतु दान अवश्य करें। जरूरतमंद व्यक्तियों को भोजन और वस्त्र का दान करें।