लखनऊ में प्रशासन की लापरवाही से हुआ दर्दनाक हादसा, गाड़ी के अंदर से हाथ हिलती रही बची, पुलिस भी थी मजबूर

मॉं-बेटी एसयूवी से सैर पर निकले थे। ड्राइवर गाड़ी चला रहा था। इकाना स्टेडियम परिसर के पास गाड़ी रोककर सभी लोग जूस पीने लगे। इतने में तेज हवा बही। 50 टन वजनी यूनिपोल और होर्डिंग से कुछ आवाज आई। ड्राइवर को इसका एहसास भी हुआ। पर इससे पहले कि वह मौके से गाड़ी हटा पाता। भारी भरकम यूनिपोल एसयूपी पर आ गिरा। हैरानी की बात यह है कि मंडलायुक्त रोशन जैकब ने दो दिन पहले ही एलडीए, नगर निगम समेत जिम्मेदार विभागों को पत्र लिखकर चेताया था कि रोड के किनारे लगे यूनिपोल जर्जर हैं। उनकी वजह से जान-माल की क्षति हो सकती है।

क्रेन से हटाया गया यूनिपोल का मलबा

गाड़ी के आगे की सीट पर बेटी और पीछे की सीट पर मॉं बैठी हुई थी। तीनों गाड़ी में दब गए। मॉं-बेटी चीखती और तड़पती रहीं। पर उनकी चीखें भी बाहर नहीं आ सकीं। बेटी गाड़ी के एक हिस्से से हाथ हिलाती हुई दिख रही थी। जिसने भी यह मंजर देखा, भावुक हो उठा। मौके पर पहुंची पुलिस, दमकल, और एसआरडीएफ के जवानों ने रेस्क्यू आपरेशन चलाया। जब पुलिस पहुंची तो उस वक्त बेटी का हाथ एसयूवी के अंदर से हिलता हुआ दिख रहा था। पर उस समय इतने भारी भरकम यूनिपोल को हटा पाना संभव नहीं था। फिर क्रेन और अन्य मशीनों से यूनिपोल के मलबे को हटाया गया और एसयूवी में फंसी मॉं बेटी और ड्राइवर को बाहर​ निकाला गया।

तीन जून को जारी पत्र में मंडलायुक्त ने जताई थी ये आशंका

लखनऊ की मंडलायुक्त डॉ. रोशन जैकब ने इस सिलसिले में बीते 3 जून को उपाध्यक्ष, लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए), नगर निगम आयुक्त, पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर और बिजली विभाग के संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने कहा है कि विभिन्न विभागों द्वारा रोड के किनारे साइनेज और विज्ञप्ति के यूनिपोल्स आदि लगाए गए हैं। जून, जुलाई और अगस्त महीने में भीषण गर्मी व बरसात के मौसम के दौरान आंधी-पानी, ओलावृष्टि व तेज हवाएं चलने से पुराने व जर्जर पोल के गिरने की संभावना रहती है। इसकी वजह से जान माल की क्षति होती है। इसलिए जरुरी है कि विभागों की तरफ से कराए गए कामों की निश्चित समय के अंदर जांच कराई जाए। जिससे जीर्ण-शीर्ण साइनेज, विज्ञापन के यूनिपोल्स, बिजली के खंभों आदि की समय से मरम्मत या बदले जाने की कार्यवाही हो सके।

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क्या कह रहे हैं अधिकारी?

इस बारे में एलडीए उपाध्यक्ष, इंद्रमणि त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की गई तो उनका फोन नहीं उठा। व्हाट्सएप के जरिए मैसेज भी किया गया। पर कोई जवाब नहीं आया।