साधारण भक्तों को ईश्वर के साथ भक्ति भाव रखना चाहिए: मुक्तिनाथानन्द जी

लखनऊ। ब्रह्म ही सत्य, नित्य व चिरंतन है- स्वामी जी सोमवार की प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि ईश्वर प्राप्ति के बाद भी मन को साधारण भूमि में वापस लाना संभव है। स्वामी जी ने कहा कि यद्यपि साधारण जीव ईश्वर के साथ अभिन्नता प्राप्ति के उपरांत वापस नहीं आते तथापि जो असाधारण जीव होते हैं जिन्हें ईश्वर कोटि कहा जाता है वह निर्विकल्प समाधि के बाद भी मन को स्वाभाविक भूमि में वापस ला सकते हैं। श्री रामकृष्ण ने कहा है कि ईश्वर कोटि की अलग बात है जैसे अनुलोम और विलोम। नेति-नेति करके लक्ष्य तक पहुँचने के बाद फिर वापस आ सकते हैं। वह विचार करते हैं ब्रह्म ही सत्य है, नित्य है, चिरंतन है तथा यह दृश्यमान जगत प्रतिक्षण परिवर्तनशील है, अनित्य है अर्थात इस संसार में भगवान ही एकमात्र ध्येय है। ईश्वर कोटि जीव साधन जीवन में अग्रसर होते है एवं आखिर में भगवान के साथ अभिन्न होकर समाधि प्राप्त करते हैं लेकिन समाधि के बाद भी ईश्वर की कृपा से वह पुनः स्वाभाविक चैतन्य अवस्था में वापस आते हैं, जीवों को शिक्षा देने के लिए जैसे-
शुकदेव, हनुमान जी और प्रहलाद जी आदि।

स्वामी जी ने कहा कि शुकदेव समाधिस्थ थे तथा उन्हें निर्विकल्प समाधि हो गई थी। भगवान ने नारद को भेजा, परीक्षित को भागवत सुनाना था। नारद श्री भगवान के रूप का वर्णन गाने लगे तब शुकदेव के हृदय में भगवान के चिन्मय रूप के दर्शन हेतु उनके अश्रु आदि सात्विक विकार होने लगे और स्वाभाविक चैतन्य भूमि में धीरे-धीरे उतर आये। कारण शुकदेव ईश्वर कोटि थे। उन्होंने कहा कि हनुमान जी साकार व निराकार दोनों का दर्शन कर लेने के पश्चात श्री राम की मूर्ति पर अपनी निष्ठा रखे थे। जिससे जीवों को आदर्श दास भाव की शिक्षा मिले। भक्त प्रहलाद भी कभी तो सोहं देखते थे अर्थात भगवान के साथ अभिन्न हो जाते थे और कभी दास भाव में रहते थे। सेव्य व सेवक का भाव लेकर वो आनंद में विराजमान रहते थे।

उन्होंने कहा कि अतएव साधारण जीव को ईश्वर के साथ भक्ति भाव से विचरण करना चाहिए। हे ईश्वर! तुम प्रभु हो, मैं दास हूँ, मैं तुम्हारा भक्त हूँ, तुम रस हो और मैं रसिक हूँ। इस भावना से यदि हम भगवान का भजन करे तब भगवत् भक्ति से हमारा हृदय आनंद में पूर्ण रहेगा।