उपराष्ट्रपति चुनाव में खुद से भी हार गया विपक्ष, 1997 के बाद जगदीप धनखड़ ने हासिल की सबसे बड़ी जीत

नए उपराष्ट्रपति के रूप में राजग उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की जीत तो पहले दिन से तय थी, लेकिन मतगणना के बाद वोटों का जो अंतर आया उसने यह सवाल खड़ा कर दिया कि विपक्ष क्या खुद से भी हार गया। कुल 725 वोट पड़े थे। इनमें से धनखड़ को 528 वोट मिले और विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 182 वोट। 15 वोट अवैध पाए गए। इस तरह धनखड़ ने विपक्षी उम्मीदवार को 346 मतों से पराजित किया है, उन्हें 74.36 प्रतिशत वोट मिला। वर्ष 1997 के बाद से उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत का यह सबसे बड़ा अंतर है। वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त तक है। उसके अगले दिन यानी 11 अगस्त को धनखड़ उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। वह देश के 14वें और राजस्थान से दूसरे उपराष्ट्रपति होंगे। राजस्थान से पहले उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत थे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष समेत पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं ने धनखड़ को जीत की बधाई दी है।

लोकसभा के महासचिव उत्पल कुमार सिह ने आंकड़ों के साथ धनखड़ की जीत की घोषणा की। दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या 788 है, लेकिन राज्यसभा की आठ सीटें खाली हैं। इसलिए कुल योग्य 780 वोटर थे, जिनमें से 725 ने मतदान किया।

55 सांसद मतदान से गैरहाजिर रहे

शिवसेना के सात सांसदों समेत कुल 55 सांसदों ने मतदान नहीं किया। शिवसेना के संजय राउत जेल में होने की वजह से वोट नहीं दे पाए। भाजपा के सनी देओल और संजय धोत्रे, समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और शफीकुर रहमान बर्क, बसपा के दो और आप के एक सांसद ने भी मतदान नहीं किया।

खुद से ही हारता नजर आया विपक्ष

पिछल महीने हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव का बड़ा राजनीतिक संदेश यह है कि विपक्ष सत्तापक्ष को हराने के बजाय खुद से ही हारता दिखा। यह स्पष्ट होना बाकी है कि जिन 15 सदस्यों के वोट अवैध हुए वे कौन हैं। विपक्षी दलों के कई सदस्यों ने वोट भी नहीं दिया।

तृणमूल कांग्रेस के दो सदस्यों ने किया मतदान

तृणमूल कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने का फैसला किया था। लेकिन उसके दो सदस्य शिशिर कुमार अधिकारी और दिब्येंदु अधिकारी ने मतदान किया। तृणमूल के कुल 36 सांसद हैं, जिनमें से 23 लोकसभा के सदस्य हैं। यह पूरा आंकड़ा इसलिए रोचक हो गया है क्योंकि इन्हीं कारणों से अल्वा को अपेक्षा से कम वोट मिले। राष्ट्रपति चुनाव में भी द्रौपदी मुर्मु को 17 सांसदों और 126 विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी।

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आंकड़े विपक्ष के लिए चेतावनी

राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव के आंकड़े विपक्ष के लिए गंभीर चेतावनी है। राष्ट्रपति चुनाव के वक्त से ही विपक्षी एकजुटता की बात बार-बार की जाती रही और लगभग उसी वक्त से इसमें दरारें भी दिखती रहीं। क्षेत्रीय राजनीति का असर इन चुनावों पर भी दिखा और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस लाचार नजर आई।