राहुल की 20 साल पुरानी कोर टीम में केवल पायलट बचे; हाथ छोड़ने वाले बोले- हम पुराने हुए तो पराया कर दिया

राहुल गांधी की 20 साल पुरानी कोर टीम क्या उनके मन मुताबिक नहीं थी? जिस कोर टीम को राहुल गांधी को मजबूती देने के लिए खड़ा किया गया था, उसके तीन दमदार सदस्य अब BJP के पाले में खड़े हैं। वहीं दो सदस्यों को पार्टी में ही साइडलाइन कर दिया गया है। टीम के छह में से केवल एक मेंबर, सचिन पायलट, ही बमुश्किल राहुल के साथ खड़े हैं।

ये सवाल तब और गहरा गया, जब विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की स्टार प्रचारकों की लिस्ट में शामिल आरपीएन सिंह भी राहुल गांधी का हाथ छोड़कर BJP में शामिल हो गए। उन्होंने कोर टीम में राहुल के भरोसे पर सवाल उठाया था।

आइए बताते हैं कि कांग्रेस की कोर टीम को लेकर क्या सवाल उठ रहे हैं।

करीब 20 साल पहले शिमला में बनी राहुल गांधी की कोर टीम अब टूट चुकी है। इस टीम में 4 लोग थे। तीन लोग, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और सबसे आखिर में आरपीएन सिंह ने कांग्रेस का दामन झटक दिया है।

बड़ी बात ये है कि ये सभी कांग्रेस की घोर विरोधी पार्टी BJP में शामिल हो गए हैं। इस टीम का आखिरी पावा या स्तंभ सचिन पायलट अब भी राहुल के साथ बने हुए हैं। हालांकि, राजस्थान की गहलोत सरकार से इनकी तल्खी जगजाहिर है।

सूत्र तो यह भी कहते हैं, सचिन पार्टी छोड़ने का मन बना चुके थे, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें मना लिया। स्टार प्रचारक की भूमिका में पायलट इस वक्त कांग्रेस के लिए ताबड़तोड़ प्रचार कर रहे हैं, लेकिन पायलट की उम्मीद पूरी नहीं हुई तो भविष्य में क्या वो कांग्रेस के साथ बने रहेंगे, यह भी एक बड़ा सवाल है।

उधर, कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह, यानी आरपीएन सिंह को स्टार प्रचारक की लिस्ट में शामिल करने के बाद भी राहुल गांधी उन्हें रोक नहीं पाए। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो मार्च 2020 में निर्णय ले लिया था।

हालांकि, उन्हें भी मध्यप्रदेश में डिप्टी CM का पद नाराजगी दूर करने के लिए ऑफर किया गया था। उसके अगले ही साल जितिन प्रसाद ने भी साथ छोड़ दिया। शुरुआती कोर टीम में यही चारों थे, लेकिन बाद में मनीष तिवारी और मिलिंद देवड़ा को भी शामिल किया गया था। मनीष तिवारी की नाराजगी अब सोशल मीडिया में तैरती ही रहती है, तो देवड़ा बिल्कुल अलग-थलग पड़े हैं।

कांग्रेस के एक पुराने दिग्गज से जब रूठते अपनों और टूटती कांग्रेस के बारे में पूछा गया तो वे चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘राहुल पुरानों पर भरोसा नहीं करते। 20 साल पहले वे चार लोग नए थे, लेकिन अब उन्हें कुछ और नए लोग मिल गए हैं। राहुल को नए लोग मिल गए और 4 में से 3 लोगों को नई पार्टी।’

जून 2003 में कैसे बनी थी राहुल की कोर टीम

कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी को एक्टिव पॉलिटिक्स में लॉन्च करने की तैयारी चल रही थी। राहुल भी अब अपना मन बना चुके थे। 33 साल के राहुल गांधी ने पार्टी को रिवाइव करने का प्लान बनाया। उन्होंने फैसला किया कि पार्टी के भीतर से कुछ युवा नामों को खोजकर वह खुद उनको ग्रूम करेंगे, लेकिन यह काम कैसे हो? जून की पसीना बहाने वाली गरमी के लिए ठंडे शिमला में 3 दिन का चिंतन शिविर लगाने का फैसला हुआ।

साल 2003, 7 जुलाई से 9 जुलाई तक। राहुल की पाठशाला में कांग्रेस के कई दिग्गज मौजूद थे, लेकिन खासतौर पर यह पाठशाला युवा कांग्रेसियों के लिए लगी थी। दरअसल, राहुल गांधी को तलाश थी अपनी विश्वासपात्र टीम की। राहुल जिस मकसद को लेकर शिमला पहुंचे आखिरी दिन यानी 9 जुलाई को वह मकसद पूरा हुआ।’

उस शिविर की व्यवस्था और फैसले में शामिल रहे एक सूत्र ने बताया, ‘3 दिन के मंथन के बाद आखिरी दिन एक पेपर पर 4 नाम लिखे गए। राहुल की कोर टीम बनकर तैयार थी। ये नाम थे जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट। हालांकि, इस कोर टीम में आगे चलकर 2 नाम और जुड़े। मनीष तिवारी, मिलिंद देवड़ा।’

अगले साल राहुल गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने वाले थे। राहुल ने अपने साथ इन धुरंधरों को भी टिकट दिया। सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में युवा तेवरों के साथ राहुल गांधी अपनी टीम को हर वक्त हर फैसले में साथ रखते थे। उस वक्त 33 साल के राहुल गांधी थे, तो 30 साल के जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह 39 साल और 26 साल के सचिन पायलट।

राहुल गांधी ने उस वक्त इस युवा टीम को भविष्य की कांग्रेस की धुरी करार दिया था, लेकिन आज राहुल की कोर टीम में से बस सचिन और खुद वो ही बचे हैं। बाकी के दो और टीम मेंबर भले ही वे कुछ महीनों बाद जुड़े, लेकिन वे भी टीम राहुल का अहम हिस्सा थे और वे भी आज हाशिए पर हैं।

इन आरोपों को लगाकर, एक-एक कर कांग्रेस छोड़ते गए राहुल के सिपाही

10 मार्च 2020 को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपना इस्तीफा पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंपा। उन्होंने आरोप लगाया था कि अब मध्य प्रदेश में युवाओं की नहीं सुनी जाती। पार्टी में भ्रष्टाचार है।

किसानों से कर्जमाफी का वादा पार्टी ने सत्ता में आने के बाद नहीं पूरा किया। हालांकि, दैनिक भास्कर ने जब उनसे बात करनी चाही तो उनके करीबी एक सूत्र ने कहा- सिंधिया अब वर्तमान और भविष्य की बात करना चाहते हैं। कांग्रेस अतीत है, वे अतीत पर बात कर समय बर्बाद नहीं करना चाहते।

जितिन प्रसाद ने जून 2021 में पार्टी छोड़ी। पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने कहा- कांग्रेस दिशाहीन हो गई है। वह जमीन से कट गई है। जमीनी कार्यकर्ता या आम आदमी की चिंता वहां किसी को नहीं। मैंने पार्टी और जमीनी कार्यकर्ता, आम आदमी के बीच सेतु बनने की कोशिश की। पर मेरी बात किसी ने नहीं सुनी।

आरपीएन सिंह ने जनवरी 2022 में पार्टी छोड़ी। उन्होंने भी करीब-करीब वही आरोप लगाए जो इन दोनों लोगों ने लगाए। उन्होंने कहा- ‘पार्टी में व्यवस्था और विचार दोनों बदल गए हैं। कांग्रेस में इस समय ऐसे लोगों की भर्ती हो रही है जो हमेशा से कांग्रेस के डायमेट्रिकली यानी पूरी तरह अपोजिट रहे। एक्सट्रीम लेफ्ट से आए लोगों को पार्टी में तवज्जो दी जा रही है।’

दरअसल, आरपीएन सिंह का इशारा राहुल और प्रियंका के चारों ओर जुटे JNU से पढ़कर निकले और लेफ्ट की छात्र राजनीति में सक्रिय रहे लोगों से था। वे आगे कहते हैं कि पार्टी में अब पुराने लोगों की बिल्कुल नहीं सुनी जाती।

उन्होंने कहा, कुछ पदाधिकारी या बड़े नेता पार्टी छोड़ते हैं तो खबर बनती है। इसलिए आरपीएन सिंह, ज्योतिरादित्य या फिर जितिन प्रसाद के छोड़ने पर खबर बनी, लेकिन ब्लॉक और जिले स्तर के सैकड़ों लोगों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया है। वे कहते हैं कि अगर किसी पार्टी से कार्यकर्ताओं का मोहभंग होने लगे तो फिर समझिए उस पार्टी का आधार डगमगाने लगा है।

मनीष तिवारी की नवंबर में आई किताब ’10 फ्लैश प्वाइंट्स: 20 इयर्स’ ने बवंडर ला दिया। मनीष ने 26/11 के हमलों के लिए उस वक्त की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, कई बार संयम कमजोरी की निशानी होती है और भारत को 26/11 हमले के बाद कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए थी।

मनीष ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाए जाने पर भी ऐतराज जताया। UP तो छोड़िए पंजाब से होने के बावजूद मनीष तिवारी को चुनाव प्रचार में कोई जगह नहीं मिली। हालांकि, उन्होंने हाल ही में यहां तक कहा कि वे कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे, उन्हें धक्का मारकर निकाल दिया जाए तो दूसरी बात है।

जुलाई, 2019 में मिलिंद देवड़ा ने मुंबई कांग्रेस के प्रमुख के पद से इस्तीफा देते वक्त कहा था कि अब वे राष्ट्रीय राजनीति में आएंगे। उन्होंने 2021 में गुजरात सरकार के काम की तारीफ कर दूसरे राज्यों को भी गुजरात के मॉडल पर काम करने की नसीहत दी थी। कांग्रेस में उनके पास न कोई पद है न कोई खास काम।

प्रियंका- राहुल की नई टीम में इस तरह बढ़ रहा लेफ्ट का दखल

आरोपों का सच जानने के लिए जब वर्तमान में प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी की टीम की पड़ताल की गई तो 3 बड़े नाम सामने आए जो लेफ्ट छात्रसंघ की राजनीति के चर्चित चेहरे हैं। इसके अलावा अन्य छोटे स्तर के कम से कम 10-12 कार्यकर्ता पार्टी में सक्रिय हैं, लेकिन यह आंकड़ा यहीं नहीं खत्म होता, क्योंकि प्रदेश स्तर पर लेफ्ट विचारधारा के लोग लगातार भर्ती किए जा रहे हैं।

प्रियंका गांधी वाड्रा के पर्सनल सेक्रेटरी JNU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष संदीप सिंह हैं। संदीप सिंह प्रियंका के इतने करीब हैं कि बिना उनकी इजाजत कांग्रेस का बड़े से बड़ा नेता प्रियंका से नहीं मिल सकता। वे राहुल और प्रियंका दोनों के भाषण से लेकर बयान तक तैयार करते हैं। संदीप AISA से जुड़े रहे हैं। 2007-08 में JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। वे करीब 4 साल से कांग्रेस के साथ हैं। इस बीच करीब 10-12 वामपंथी विचारधारा के कार्यकर्ता वे पार्टी में लेकर आए। उत्तर प्रदेश में सुधांशु वाजपेयी, सरिता पटेल बनारस में तो अनिल यादव भी संदीप के लाए हुए हैं। UP में सक्रिय BJP के घोर विरोधी NGO ‘रिहाई मंच’ के कुछ कार्यकर्ता भी संदीप पार्टी के भीतर लेकर आए हैं।

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JNU के पूर्व और बेहद चर्चित छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की एंट्री और कांग्रेस में उनका भव्य स्वागत तो हाल ही की बात है।

2016-17 में JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे मोहित पांडे कांग्रेस में शामिल हुए। सोशल मीडिया के इंचार्ज हैं। वे AISA के कर्मठ कॉमरेड हैं।

कोर टीम छोड़नेवाले दिग्गज अब कहां हैं

कांग्रेस में राज्य की राजनीति से निराश ज्योतिरादित्य सिंधिया अब BJP में केंद्रीय मंत्री हैं। वे यूनियन मिनिस्टर ऑफ सिविल एविएशन हैं।

जितिन प्रसाद UP सरकार में तकनीकी एजुकेशन मंत्री हैं। वे इस वक्त UP चुनाव में स्टार प्रचारक की अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आरपीएन सिंह अभी एक महीने पहले ही BJP में शामिल हुए हैं, लिहाजा वे अभी स्टार प्रचारक के तौर पर भूमिका निभा रहे हैं।