पटना। बिहार की छह राज्यसभा सीट पर चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने बृहस्पतिवार को अधिसूचना जारी कर दी। इन छह सीटों पर सांसदों का कार्यकाल अगले महीने समाप्त हो रहा है। इसी के साथ राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया 15 फरवरी को समाप्त हो जाएगी।
इन आधा दर्जन सीट में से तीन-तीन सीट राज्य के सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन के पास हैं। जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) अध्यक्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाल ही में पाला बदलने से महागठबंधन फिलहाल राज्य में विपक्ष की भूमिका में है।
जिन सांसदों का मौजूदा कार्यकाल समाप्त होने वाला है उनमें वशिष्ठ नारायण सिंह और अनिल हेगड़े (जदयू), सुशील कुमार मोदी (भाजपा), मनोज कुमार झा और अशफाक करीम (राजद) और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह शामिल हैं। राज्यसभा सीट के लिए मतदान 27 फरवरी को होगा।
स्थापित परंपरा के अनुसार मतदान सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक होगा, जबकि मतगणना उसी दिन शाम पांच बजे से होगी। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग के तीन उम्मीदवार आसानी से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो सकते हैं।
बिहार में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी अपने बेहतर संख्या बल को देखते हुए इस बार दो उम्मीदवार मैदान में उतारेगी, जबकि सहयोगी जदयू को एक सीट जीतने में मदद करेगी। वर्ष 2018 के पिछले द्विवार्षिक चुनाव में तत्कालीन वरिष्ठ भागीदार जदयू को दो सीट मिली थीं, जबकि भाजपा को एक सीट मिली थी।
भाजपा के आक्रामक रुख को लेकर जदूय के सूत्र फिलहाल मौन हैं और मुख्यमंत्री नीतीश के इशारे की प्रतीक्षा कर रहे हैं। समझा जा रहा है कि नीतीश ने अपने दिल्ली दौरे के दौरान राज्यसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य नेताओं से चर्चा की थी।
भाजपा खेमे में सभी की निगाहें दशकों से बिहार में पार्टी के सबसे चर्चित चेहरे सुशील कुमार मोदी पर होंगी, जिनसे जदयू प्रमुख के साथ उनकी कथित निकटता के कारण 2020 में उपमुख्यमंत्री का पद कथित तौर पर छीन लिया गया था।
उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक राम विलास पासवान के निधन के बाद खाली हुई सीट से राज्यसभा में भेजा गया था।यह देखना रोचक होगा कि जदयू उस एक सीट पर किसे उतारती है जो उसे मिल सकती है।
सिंह नीतीश कुमार के पुराने वफादार रहे हैं, जिन्होंने दो साल पहले खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए जदयू के प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था, लेकिन नीतीश के औपचारिक रूप से पार्टी की कमान संभालने के बाद उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में वापसी की।
हेगड़े भी एक भरोसेमंद सहयोगी रहे हैं, पिछले साल महेंद्र प्रसाद उर्फ किंग के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनको उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। धन जुटाने की क्षमता के कारण ही करीम को राज्यसभा में जगह मिली, जो अपने गृह जिले कटिहार में एक निजी विश्वविद्यालय और एक मेडिकल कॉलेज चलाते हैं।
राजद के फिर से सत्ता से बाहर होने और लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव जैसे शीर्ष नेताओं के कानूनी मामलों में फंसने के बीच अब यह देखना है कि करीम के नाम पर एक और कार्यकाल के लिए विचार किया जाता है या नहीं।
झा ने संसद में पार्टी के सबसे मुखर वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई है, जहां निचले सदन में राजद का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। ऐसे में देखना यह है कि क्या पार्टी के प्रथम परिवार से निकटता के कारण दिल्ली में रहने वाले झा के नाम पर एक और कार्यकाल के लिए विचार किया जाता है या नहीं। राजद का समर्थन कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण होगा।
कांग्रेस के पास अपने किसी भी सदस्य को राज्यसभा के लिए निर्वाचित कराने के लिए पर्याप्त संख्या में विधायक नहीं हैं।अखिलेश प्रसाद सिंह को कांग्रेस में लालू प्रसाद का सबसे भरोसेमंद व्यक्ति माना जाता है। अखिलेश वर्ष 2010 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। सिंह ने संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग)-एक सरकार में राजद कोटे से मंत्री पद संभाला था, लेकिन जब पार्टी ने लोजपा के साथ अल्पकालिक गठबंधन के लिए कांग्रेस का साथ छोड़ दिया तो वह नाखुश हो गए।