भारत ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतारकर इतिहास रच दिया। चंद्रयान-3 ने चांद के कई रहस्यों से पर्दा उठाए हैं। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO एक बार फिर अब विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर से संपर्क करने प्रयास कर रहा है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कई ऐसे क्रेटर हैं, जहां पर सूरज का प्रकाश नहीं पहुँच पाता है। अभी तक के मिले डाटा से पता चलता है कि इन क्रेटर यानी गड्ढों में पानी हो सकता है। यह पानी बर्फ के रूप में मौजूद है।
हालांकि एक नए रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस शोध के अनुसार, ऐसा अनुमान है कि इनके अंदर पहले की तुलना में पानी कम हो। यह स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्र कहे जाते हैं। भविष्य में इन गड्ढों के पास कई मिशन हो सकते, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इनके अंदर बर्फ है। अंतरिक्ष यात्री इसका इस्तेमाल भविष्य के मिशन के दौरान कर सकते हैं।
इसका पानी साथ ही रॉकेट फ्यूल के तौर पर उपयोग किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का सबसे ज्यादा ध्यान इसे रॉकेट फ्यूल बनाने पर है। उनका प्लान हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करना है। अगर वैज्ञानिक इस काम में सफल हो जाते हैं, तो मंगल ग्रह के लिए जो मिशन जाएगा, वह यहां से होकर जाएगा। लेकिन किये गए नए अध्ययन के निष्कर्षों से जानकारी मिली है कि PCR ज्यादा से ज्यादा 3.4 अरब साल पुराने हैं। जिन विशाल गड्ढों में यह हैं, वह 4 अरब साल पुराने हैं।
नए रिसर्च के मुताबिक, सम्भावना है कि जितना पानी माना जाता है, उसकी मात्रा के आंकड़े को कम करना चाहिए। एरिजोना में प्लैनेटरी साइंस इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक और नए रीसर्च के प्रमुख लेखक, नॉर्बर्ट शॉर्गोफर ने कहा कि इंपैक्ट और गैस का बाहर आना संभावित स्रोत हैं।
चाँद पर हुआ पानी का नया खुलासा
आपको बता दे, धरती से मंगल ग्रह के आकार का एक ग्रह टकराया था, जिसके बाद चांद का निर्माण हुआ। सिमुलेशन से पता है कि करीब 4.1 अरब साल पहले चांद अपनी धुरी पर झुकाव महसूस किया, जिसकी वजह से यह 77 डिग्री तक पहुंच गया था। शोधकर्ताओं ने लिखा कि हो सकता है कि उससे पहले चांद पर पानी रहा हो, लेकिन इतने बड़े झुकाव के कारण सभी बर्फ खत्म हो गई होगी। सिमुलेशन में चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पास PCR नजर आए, जो कक्षा के फिर से अपनी जगह आने के बाद समय के साथ बढ़ते चले गए। लेकिन संभावना है कि इनके पानी की मात्रा कम है।
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