नवजोत सिद्धू साल भर में ही अर्श से फर्श पर पहुंचे, पहले भी तीन बार देना पड़ गया इस्तीफा

पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू एक साल में ही अर्श से फर्श पर आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 34 साल पुराने रोड रेज केस में एक साल की सश्रम सजा सुनाई है। यह साल उनके लिए एक के बाद एक बुरी खबर लेकर आया है। वर्ष 2022 में ही उनकी लगातार चुनावी जीत का भी सफर थमा और उन्हें विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। चुनावी हार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया।

सिद्धू ने वर्ष 2004 में अमृतसर से ही अपनी सियासी पारी की शुरूआत की थी। भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता आरएल भाटिया को 1,09,532 मतों से पराजित किया था। भाटिया छह बार अमृतसर सीट से सांसद रहे थे।

फिर, सिद्धू ने 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस के सुरिंदर सिंगला को 77,626 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ओम प्रकाश सोनी को 6,858 मतों से पराजित किया। भाजपा ने 2014 में सिद्धू की टिकट काटकर पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली को दे दी। सिद्धू खफा हुए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता दिलवाई। 28 अप्रैल, 2016 को उन्होंने राज्यसभा की शपथ ली, पंजाब की राजनीति से खुद को दूर होता देखकर 18 जुलाई 2016 को राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया।

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2017 में थामा था कांग्रेस का हाथ

15 जनवरी, 2017 को सिद्धू ने कांग्रेस ज्वाइन की ओर इसका हिस्सा बने। कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद वह अपनी पत्नी के हलके अमृतसर पूर्वी से चुनाव मैदान में उतरे और विधायक बने। 16 मार्च 2017 को हुए विधानसभा के गठन में उन्हें निकाय और पर्यटन मंत्रालय सौंपा गया। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 6 जून को सिद्धू से निकाय विभाग ले लिया था और उन्हें उर्जा विभाग दिया था। इससे खिन्न सिद्धू ने 20 जुलाई को मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।