2 बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे मुलायम सिंह यादव, जानें किन नेताओं ने लगाया था अड़ंगा

मुलायम सिंह यादव राजनीति के अखाड़े के पहलवान कहे जाते थे। उन्हें अपने विरोधियों को चित करने में महारत हासिल थी। मुलायम उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। वह देश के रक्षा मंत्री भी बने। हालांकि, मुलायम के राजनीतिक जीवन में 2 बार ऐसे मौके आए, जब वह प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। आज नेताजी का गुरुग्राम के अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। हम आपको वो किस्सा बताते हैं कि आखिर कैसे पीएम बनने का मुलायम का सपना पूरा न हो सका। 

पहला मौका 1996 में आया, जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात मिली थी। कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं और भाजपा ने 161 सीटें जीती थीं। अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला। वह प्रधानमंत्री तो बने लेकिन 13 दिनों बाद ही उनकी सरकार गिर गई। अब कांग्रेस के पास मौका था लेकिन वह खिचड़ी सरकार बनाने के मूड में नहीं थी। तब वीपी सिंह ने भी पीएम बनने से इनकार कर दिया। हालांकि, उन्‍होंने बंगाल के सीएम ज्‍योति बसु का नाम आगे बढ़ाया जिसे पोलित ब्‍यूरो ने नामंजूर कर दिया।

अब प्रधानमंत्री की रेस में मुलायम और लालू प्रसाद यादव का नाम सबसे आगे था। हालांकि, चारा घोटाले के चलते लालू इससे बाहर हो गए। सबको एक करने का काम वामदल के बड़े नेता हर किशन सिंह सुरजीत को सौंपा गया था। उन्‍होंने मुलायम के नाम की पैरवी की। बताते हैं कि उनके शपथ ग्रहण की तैयारियां भी कर ली गई थीं। हालांकि, लालू और शरद यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए, जिससे बात नहीं बन पाई। इसके बाद एचडी देवगौड़ा को पीएम पद की शपथ दिलाई गई।

एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली मिली-जुली सरकार जल्द ही गिर गई। 1999 में फिर चुनाव हुआ। मुलायम सिंह ने संभल और कन्नौज दोनों ही सीटें जीत लीं। पीएम पद के लिए एक बार फिर उनका नाम आगे आया। एक बार फिर दूसरे यादव नेताओं ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। ऐसे में यह दूसरा मौका था जब मुलायम के पास आती पीएम की कुर्सी दूर हो गई। बाद में मुलायम ने एक रैली में कहा भी कि लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्र बाबू नायडू और वीपी सिंह के चलते वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके।

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मुलायम सिंह यादव के जीवन से जुड़ी प्रमुख उपलब्धियां और घटनाएं इस प्रकार हैं…

1939: उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में जन्म।

1967: राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया।

1968: चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल में शामिल हुए। इस पार्टी का संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में विलय हो गया और भारतीय लोक दल का गठन हुआ। आपातकाल (1975-1977) के बाद भारतीय लोक दल का जनता दल में विलय हो गया।

1977: पहली बार मंत्री बने।

1982-1985: विधान परिषद के सदस्य रहे और परिषद में विपक्ष के नेता बने।

1985-87: जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष बने।

1989-1991: पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

1992: समाजवादी पार्टी का गठन किया।

1993-95: दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

1996: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, रक्षा मंत्री बने।

1998: संभल से फिर से लोकसभा सदस्य बने।

1999: संभल से फिर से सांसद चुने गए।

2003: तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पत्नी मालती देवी का निधन। साधना गुप्ता से विवाह किया।

2004: मैनपुरी से सांसद चुने गए।

2007: उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।

2009, 2014 और 2019 में सांसद बने।

10 अक्टूबर 2022 को निधन।