बिहार के राजगीर वीरायतन की संस्थापक जैन साध्वी चंदना को मिला पद्मश्री

बिहार से दो लोगों को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इनमें अर्थशास्त्री स्व. शैबाल गुप्ता है और राजगीर वीरायतन की संस्थापक आचार्यश्री चदना जी महाराज हैं।

चंदना जी मूलत: महाराष्ट्र राज्य की निवासी हैं लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि बिहार के राजगीर को बनाया।चंदना जी ने कई ऐसे कार्य किए हैं, जिनसे इतिहास के पन्नों में उनका नाम दर्ज हो गया है। वे जैन धर्म जगत में आचार्य पद प्राप्त करने वाली प्रथम साध्वी हैं। 84 वर्षीया चंदना जी लगभग 50 साल से लोगों की सेवा कर रही हैं। उन्होंने 1972 में राजगीर में मानवीय कार्य की शुरुआत की थी।

26 जनवरी, 1937 महाराष्ट्र के जिला पुणे के चस्कामन गांव के एक भील परिवार में इनका जन्म हुआ। माता प्रेम कुंवर कटारिया व पिता माणिकचंद कटारिया ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके घर एक दिव्य व्यक्तित्व का जन्म हुआ है, जो भविष्य में अपनी दिव्य प्रकाश पुंज से उनका ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय में नाम रोशन करेगा। उन्होंने इनका नाम शकुंतला रखा। पराधीन व स्वाधीन भारत की हवा में सांस लेने का अनुभव किशोरी शकुंतला को हुआ। मन ने मानव सेवा का रास्ता चुना। तब स्वयं को समाज के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने तीसरी कक्षा तक औपचारिक शिक्षा ग्रहण की।

वीरायतन स्थित नेत्र ज्योति सेवा मंदिर में अब तक लाखों नेत्र रोगियों के अंधेरे जीवन को इंद्रधनुषी रंग की रोशनी मिली है। बीते 08 जून, 2017 से पालिताना व गुजरात में वीरायतन शिक्षा के क्षेत्र के तहत उक्त स्थानों पर तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर विद्यालय की भी उन्होंने शुरुआत की हैं।

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14 वर्ष की आयु में ली जैन धर्म की दीक्षा

शकुंतला के नाना ने उन्हें जैन साध्वी सुमति कुंवर के अधीन दीक्षा लेने के लिए मना लिया। चौदह वर्ष की आयु में उन्होंने जैन दीक्षा ली और साध्वी चंदना बन गईं। उन्होंने जैन धर्मग्रंथों, जीवन के अर्थ और उद्देश्य और विभिन्न धर्मों का अध्ययन करने के लिए 12 वर्षों का मौन व्रत किया। इसके बाद तो मानों बड़ी-बड़ी डिग्रियां उनका इंतजार करने लगी। उन्होंने भारतीय विद्या भवन, मुंबई से दर्शनाचार्य की उपाधि प्राप्त की, पराग से साहित्य रत्न और पाथर्डी धार्मिक परीक्षा बोर्ड से मास्टर डिग्री ली। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से नव्य न्याय और व्याकरण के विषयों में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।