स्वतंत्रता के लिए जीवन को समर्पित करने वाले वीरों का सम्मान करना गौरव का विषय: डॉ. भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मणिपुर के चार दिवसीय दौरे के तीसरे दिन रविवार को कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। शाम को राजधानी इंफाल के राजश्री भगैयाचंद्र स्कील डेवलपमेंट सेंटर में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लिया। एच सुखदेव शर्मा और ए कोइरेंग द्वारा संयुक्त रूप से रचित एवं नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया द्वारा प्रकाशित- “अनसंग एंग्लो-मणिपुर वॉर हीरोज एट कालापानी” नामक पुस्तक का अनावरण किया। इस मौके पर मणिपुर के अनसंग नायकों के परिवार के सदस्यों से मुलाकात भी की।

उल्लेखनीय है कि मणिपुर के महाराजा कुलचंद्र ध्वज सिंह समेत 23 लोगों को कालापानी की सजा हुई थी। पुस्तक में इसके बारे में तथ्यों को समाहित किया गया है। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद महाराजा एल सनजाओबा समेत अन्य कई सम्मानित अतिथियों ने भी हिस्सा लिया।

इससे पूर्व सुबह मोइरंग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में डॉ भागवत ने हिस्सा लेते हुए माल्यार्पण कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किये।

पुस्तक विमोचन समारोह में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि हम मणिपुर वासियों के लिए और सब भारतवासियों के लिए यह एक बड़ा गौरव का विषय है कि स्वतंत्रता के लिए जिन वीरों ने अपने जीवन को समर्पित कर दिये, स्वतंत्रता के 75 साल पूर्ण होने पर हम उनका सम्मान कर रहे हैं। इतना ही नहीं उनके बारे में जानकारी बढ़ा रहे हैं।

उन्होंने मणिपुर के स्वतंत्रता आंदोलन की विस्तार से चर्चा करते हुए मणिपुर के कालापानी की सजा पाए वीर सेनानियों के संघर्ष की महत्ता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी सिर्फ आजादी के लिए ही नहीं लड़े, बल्कि वे अपने धर्म के लिए भी लड़े थे। आजादी की लड़ाई 1857 से पहले से ही आरंभ हुई, जो 1947 तक अनवरत चलती रही। इसमें समूचे देश के लोगों ने हिस्सा लिया। उन्होंने इसे विभिन्न उदाहरणों के जरिए बताया।

मणिपुर के कालापानी की सजा पाए स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष की महत्ता को बताया। वे कैसे मणिपुर से कालापानी पहुंचे, वहां से अपने अंतिम समय तक देश के किन-किन स्थानों पर जीवन बिताया।

उन्होंने कहा कि मैं मणिपुरी भाषा नहीं जानता, मणिपुर में 10 बार आया हूं। बस इतना ही है। लेकिन, यह पुस्तक पढ़ने के बाद मुझे उन शहीदों के प्रति एक श्रद्धा और गौरव का अनुभव होता है। ऐसा मणिपुर भारत में है। इसलिए भारत का संबंध भी उनसे है। इसका आनंद होता है।

यह हमारे उनके प्रति श्रद्धा के चलते है। हम उनका सम्मान करते हैं। यह बात तो ठीक ही है। लेकिन, उनका जीवन उनका परिश्रम, उनका युद्ध, उनका त्याग, बलिदान- यह हम सब लोगों को आज हमें कैसे जीना चाहिए, इसका पथ प्रदर्शन करता है।

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उन्होंने पुस्तक का मणिपुरी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराने का आह्वान किया ताकि सभी लोग इस पुस्तक को पढ़कर इसको समझ सकें। इसमें जानकारी क्या है, यह जानकारी मिले कि हमारे पूर्वजों ने मणिपुर में कैसा पुरुषार्थ किया, इससे पूरे भारत को जानकारी मिलेगी और यह भारत को विश्व गुरु बनाने में मदद करेगा। महाभारत काल से भारत के जीवन में मणिपुर का योगदान रहा है। वैसा ही योगदान आज की पीढ़ी भी उन वीरों से प्रेरणा लेकर करते हैं। एक देश के हम सब हैं। अपना-अपना योगदान करके पूरे देश को पुष्ट बना रहे हैं। ऐसा एक समग्र भारतवर्ष का उत्थान हमारे कृत्य से हम प्राप्त करें। ऐसी प्रेरणा इस पुस्तक में है। इस पुस्तक के लेखक और प्रकाशक का मैं फिर एक बार अभिनंदन करता हूं। यहां जो हमारे शहीदों के वीर पुरुषों के बंशज लोग हैं, उनका मैं श्रद्धापूर्वक अभिनंदन करता हूं।