सूतक काल में प्रधानमंत्री को धार्मिक अनुष्ठान कराने के मामले की जांच शुरू

श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के अवसर पर सनातनी परम्परा के विपरीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धार्मिक अनुष्ठान कराने के आरोपों ने तूल पकड़ लिया है। अर्चक पंडित श्रीकांत मिश्रा पर आरोप लगा है कि उन्होंने सूतक काल में रहने के दौरान धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराया। इस मामले में पंडित मिश्रा पर लगे आरोप की जांच शुरू हो गई है।

प्रदेश के धर्मार्थ कार्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी ने जांच का आदेश देकर रिपोर्ट तलब की है। मंदिर के अपर कार्यपालक अधिकारी दोनों पक्षों की जानकारी लेकर सोमवार तक रिपोर्ट सौंपेंगे। हालांकि पंडित मिश्रा ने सूतक में धार्मिक अनुष्ठान के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। मिश्रा ने बताया कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन के समक्ष उन्होंने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है।

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श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व न्यासी दीपक बजाज ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है कि सूतक में रहने के दौरान पंडित श्रीकांत मिश्र ने धार्मिक अनुष्ठान कराया। बजाज का आरोप है कि पंडित मिश्रा ने श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण की पूजा प्रधानमंत्री मोदी से खुद सूतक काल में रहते हुए कराई थी। बजाज ने दावा किया कि पंडित मिश्रा ने ये बात जानबूझ कर प्रधानमंत्री और अन्य अधिकारियों से छिपाई थी। पंडित मिश्रा ने सनातनी परंपरा का अपमान करते हुए अनिष्ट को आमंत्रण दिया है। बजाज ने पूरे मामले की जांच कराने की मांग की है।

बकौल बजाज, गत पांच दिसंबर को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में पंडित श्रीकांत मिश्रा के चचेरे भाई रविकांत मिश्र के पुत्र वेदप्रकाश का सड़क हादसे में निधन हो गया था। 18 दिसंबर को वेदप्रकाश का त्रयोदशाह था, जिसमें शामिल होने के लिए श्रीकांत मिश्रा की मां और पत्नी नरसिंहपुर गई थीं। ऐसे में सनातन धर्म के अनुसार पंडित मिश्रा पूजा-पाठ तो दूर मंदिर में प्रवेश करने के भी योग्य नहीं थे। फिर भी उन्होंने ऐतिहासिक महाआयोजन की पूजा क्यों कराई, इसकी जांच होनी चाहिए। वहीं, श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण का मुहूर्त निकालने वाले आचार्य गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ का कहना है कि कौन सूतक में था और कौन नहीं था, इसकी जानकारी हमें नहीं है। हमारे धर्मशास्त्र यह कहते हैं कि सूतक काल में देवस्थान में नहीं प्रवेश करना चाहिए तो पूजापाठ का सवाल ही नहीं उठता है।