इस वर्ष भी फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन 28 मार्च रविवार को होलिका जलेगी और इसके अगले दिन 29 मार्च सोमवार को रंगोत्सव यानी धुलैंडी मनाई जाएगी। इस वर्ष होली के मौके पर खुशी की बात यह है कि इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं जो इस दिन को बेहद खास बनाते हैं जो ना सिर्फ त्योहार के लिहाज से महत्वपूर्ण है बल्कि सांसारिक और आध्यात्मिक रूप से शुभ फलदायी माने जाते हैं।
होलिका दहन मुहूर्त 2021
28 मार्च को दिन में 1 बजकर 54 मिनट पर भद्रा समाप्त हो जाएगा। ऐसे में प्रदोष काल में इस बार होलिका दहन किया जाना शुभ फलदायी रहेगा। होलिका दहन का मुहूर्त शाम 06:20 से 08:41 तक रहेगा। इस वर्ष होलिका दहन के समय वृद्धि योग उपस्थित रहेगा। अपने नाम के अनुसार यह योग सभी शुभ कर्मों में वृद्धि और उन्नति प्रदान करने वाला रहेगा। वृद्धि योग के साथ होलिका दहन के दिन कई और भी शुभ योग उपस्थित होंगे।
सर्वार्थ सिद्धि योग में होलिका दहन
इस वर्ष 28 मार्च होलिका दहन के दिन सुबह से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस योग में होलिका पूजन और रिवाजों को निभाना मंगलकारी होगा। धन संबंधी निवेश और टोटके करना भी शुभ फलदयी रह सकता है। मंत्र साधना और शुभ कार्यों का आरंभ करना भी लाभप्रद होगा।
होलिका दहन के साथ अमृत सिद्धि योग भी
होलिका दहन के दिन इस वर्ष सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ अमृत सिद्धि योग भी होगा। पंचांग की गणना के अनुसार रविवार 28 मार्च को शाम 5 बजकर 36 मिनट से अमृत सिद्धि योग आरंभ होगा। ऐसे में होलिका दहन इसी योग में किया जाएगा।
होलिका दहन की रात ग्रहों का संयोग
इस बार होलिका दहन की रात गुरु और शनि एक ही राशि में मौजूद रहेंगे। ऐसा संयोग दुर्लभ माना जाता है। इसके अलावा होलिका दहन की रात इस बार शुक्र अपनी उच्च राशि में होंगे और सूर्य मित्र राशि में। ग्रहों का यह संयोग भी अच्छा माना जा रहा है।
होलिका दहन की तैयारियां
होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले माघ पूर्णिमा से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। ग्रंथों के अनुसार होलिका दहन में गाय के गोबर से बने कंडे और कुछ चुने हुए पेड़ों की लकड़ियों को ही जलाना चाहिए। क्योंकि धार्मिक दृष्टि से भी पेड़ों पर किसी न किसी देवता का आधिपत्य होता है। उनमें देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इसलिए तीज-त्योहारों पर शास्त्रों में पेड़ों की पूजा करने का भी विधान है, जो हमारे लिए स्वास्थ्य वर्धक व हमारे प्राणों के रक्षक हैं। इसलिए हरे पेड़ों का होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
होलिका दहन का महत्व
हिंदू धर्म के अनुसार, हर त्यौहार का अपना धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है। क्योंकि हर एक त्यौहार हमें एक अच्छा संदेश, सीख और शिक्षा प्रदान करता है। इसी क्रम में होलिका दहन पर्व भी हमें एक अच्छी सीख देता है। होलिका दहन के द्वारा हम समाज के अंदर फैली बुराइयों को जलाते हुए उससे सीख लेते हैं। माना जाता है कि इस दिन हर एक व्यक्ति को संकल्प लेते हुए अपनी असुरी प्रवृत्ति का होलिका की अग्नि में दहन कर देना चाहिए। मान्यता अनुसार जो भी कोई व्यक्ति पूरे विधि विधान से होलिका दहन की पूजा कर उसकी परिक्रमा करता है उसे स्वस्थ जीवन और सुख-समृद्ध की प्राप्ति होती है। वसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करते हुए इस उत्सव के माध्यम से हम अग्नि देवता के प्रति अपना कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
इस होलिका दहन शनि दोष से मिलेगी मुक्ति
वैदिक शास्त्रों के अनुसार होलिका की रात्रि के समय पूजा करने से जिस भी जातक की कुंडली में व्याप्त दोष होते हैं उन्हें कम किया जा सकता है। इसके साथ ही होलिका की पूजा कर व्यक्ति शनि दोष और पितृ दोष को भी दूर कर सकता है। होलिका दहन पर गन्ना भूनने और अग्नि की परिक्रमा करने से दोष दूर होते हैं। होलिका की परिक्रमा से जातक की ग्रह बाधा भी दूर होती है।
होलिका दहन पर करें ये महाउपाय
होलिका दहन के समय परिवार के लोगों द्वारा एक साथ होलिका की परिक्रमा करना शुभ होता है। परिक्रमा लेते वक़्त होलिका में चना, मटर, गेहूं, अलसी अवश्य डालें। इसे धन लाभ का अचूक उपाय माना गया है। मान्यता अनुसार होली वाली रात पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाकर, पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा लगाएं। ऐसा करने से जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता हैं। होलिका दहन के अगले दिन सबसे पहले मंदिर जाकर देवी-देवताओं को गुलाल चढ़ाना चाहिए, उसके बाद ही होली खेलनी चाहिए। होलिका के जलने के दौरान उसमें कपूर डालने से हमारे आसपास मौजूद हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। होलिका दहन के समय सरसों के कुछ दानें होलिका को अर्पित कर माँ लक्ष्मी को याद करें। ऐसा करने से देवी लक्ष्मी घर पर कृपा करती हैं।
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होलिका दहन के आवश्यक नियम और पूजा विधि
हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाला समय) में पूर्णिमा तिथि के प्रबल होने पर ही किया जाना चाहिए। घर में सुख-शांति और समृद्धि के लिए दहन से पहले होलिका पूजा का विशेष महत्व होता है। होलिका पूजन करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर की ओर करके बैठें। पूजन की थाली में पूजा समाग्री जैसे: रोली, पुष्प, माला, नारियल, कच्चा सूत, साबूत हल्दी, मूंग, गुलाल और पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां व एक लोटा जल होना चाहिए। होलिका के चारों ओर सहपरिवार सात परिक्रमा करके कच्चा सूत लपेटना शुभ होता है। इसके पश्चात विधिवत् तरीके से पूजन के बाद होलिका को जल का अर्घ्य दें और सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका का दहन करें। होलिका दहन की राख बेहद पवित्र मानी जाती है। इसलिए होलिका दहन के अगले दिन सुबह के समय इस राख को शरीर पर मलने से समस्त रोग और दुखों का नाश किया जा सकता है।