भारत को ऐसे ही विविधताओं का देश नहीं कहा जाता है, यहां का खान-पान, बोली-भाषाएं ही नहीं बल्कि यहां के रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताएं भी विविधताएं लिए हुए है। कहीं पति की लम्बी उम्र के लिए महिलाएं करवाचौथ का व्रत रखती है और छन्नी से पति का चेहरा देखकर ही व्रत खोलती है तो कहीं पति की लम्बी उम्र के लिए ही विधवा बन जाती है। कहीं शादी को कामयाब बनाने के लिए पेड़-पौधों से तो कहीं पशु-पक्षियों से विवाह करा दिया जाता है। धर्म के नाम पर बहुत सी ऐसी अजीबों गरीब प्रथाएं प्रचलित है।
आइये जानते है कुछ ऐसी ही चौंका देने वाली धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं के बारे में…..
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और बिहार में गछवाहा समुदाय के लोग रहते है, जिनमें लम्बे समय से एक प्राचीन मान्यता चली आ रही है। इस समुदाय के लोग तरकुलहा देवी की पूजा करते हैं। गछवाहा समुदाय की महिलाएं पति की लम्बी उम्र के लिए कुछ दिन विधवा का जीवन बिताती है। रामनवमी के दिन से लेकर नागपंचमी तक विधवा की तरह रहती हैं। नागपंचमी के दिन महिलाएं देवी के मंदिर आकर मांग भरती हैं और फिर से सुहाग चिन्ह धारण करती हैं। मान्यता यह है कि ऐसा करने से उनके पति के जीवन पर आने वाला संकट टल जाता है।
अलग-अलग रत्न की अंगूठी पहने तो आपने बहुत लोगों को देखा ही होगा, कुछ लोग तकदीर बनाने के लिए अंगूठी पहनते है तो कुछ लोग अपनी राशि के हिसाब से रत्न पहनते है। लेकिन महाराष्ट्र के शोलापुर और कर्नाटक के इंदी स्थित श्री संतेश्वर मंदिर में तकदीर बनाने के लिए एक अलग ही मान्यता है। वहां ऐसी प्रथा को लोग आजमाते हैं जिसे देखकर आप दहल जाएंगे। दरअसरल यहां की मान्यता है कि बच्चे को ऊंचाई से फेंका जाए और नीचे लोग उसे चादर में पकड़े।ऐसा करने वालों की मान्यता है कि ऐसा करने से बच्चा सेहतमंद होता है साथ ही परिवार का भाग्योदय होता है।
बच्चा गोरा हो इसके लिए मां दूध और बादाम से बच्चे की मालिश करती है ऐसा करते तो देखा होगा लेकिन उत्तरप्रदेश के वाराणसी और मिर्जापुर में कराहा पूजन की अनोखी परंपरा है। इसमें पिता खैलते दूध से बच्चे को स्नान करवाता है और बाद में खुद भी स्नान करता है। कहते हैं इससे बच्चे को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
राजस्थान के जोधपुर में एक त्योहार मनाया जाता है जिसका नाम है धींगा गवर। इस त्योहार में महिलाएं जवान लड़कों को बेंत से मारती है। मजे की बात तो यह है कि लड़के मार खाने के लिए उतवाले भी रहते हैं। इसका कारण एक अजब गजब मान्यता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति बेंत की मार खाता है उसकी शादी जल्दी हो जाती है।
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इस परंपरा को तो यही कहेंगे कि आ गाय मुझे मार क्योंकि इस परंपरा में लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से गाएं गुजरती है। आपको बता दें कि यह परंपरा उज्जैन जिले के कुछ गांवों में दीपावली के अगले दिन उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इसका संबंध उन्नति और खुशहाली से है।
आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में एक अजब-गजब परंपरा है। यहां बच्चों को विकलांगता से बचाने के नाम पर गले तक जमीन में गाड़ा जाता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्रग्रहण से कुछ समय पहले बच्चों को जमीन के नीचे गले तक मिट्टी में दबाने की परंपरा यहां वर्षों से चली आ रही है। कहते हैं इससे बच्चे की मानसिक और शारीरिक विकलांगता दूर होती है।
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दांपत्य जीवन में प्रेम और सुहाग की लंबी उम्र के नाम पर बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में एक अजीबो गरीब मान्यता को लोग वर्षों से निभाते चले आ रहे हैं। यहां नवविवाहित कन्या के घुटने को जलते दीप की लौ से दागा जाता हैं। इसके लिए एक खास त्योहार मनाया जाता है जिसे मधुश्रावणी कहा जाता है क्योंकि सावन महीने में यह त्योहार मनाया जाता है।
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मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में अजीबो गरीब परंपरा है। यहां चेचक से बचने के लिए हनुमान जयंती के मौके पर कुछ लोग शरीर को छेदवाते हैं। ऐसी धारणा है कि इससे माता का कोप नहीं सहना पड़ेगा यानी चेचक से बच जाएंगे।