हइ सब यूपी का आगे और नेतृत्व करेंगे… अखिलेश के कंधे पर हाथ और फिर नीतीश ने हंसते हुए क्यों कही यह बात?

बिहार के सीएम नीतीश कुमार (Nitish Kumar) दिल्ली पहुंचे हुए हैं। बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़कर लालू और तेजस्वी यादव की आरजेडी के साथ हाथ मिलाकर वह एक बार फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में वह खुद प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए नजर आ रहे हैं। विपक्षी दल के नेताओं के साथ लगातार मुलाकात भी कर रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में भर्ती मुलायम सिंह यादव से भी मुलाकात की। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भी साथ ही थे। मुलाकात के बाद बाहर निकले नीतीश के लिए मीडिया के माइक और कैमरे सवाल के साथ तैयार थे। नीतीश अकेले ही आगे आए। सवाल शुरू हुआ तो पीछे खड़े अखिलेश से भी आगे आने का आग्रह किया गया। नीतीश ने जवाब देते हुए कहा- हम सब का व्यू तो एक ही है। सबको मिलकर आगे बढ़ना है। इसी बीच अगला सवाल अखिलेश की भूमिका को लेकर उछला। नीतीश ने हंसते हुए कह दिया- हइ सब यूपी का आगे और नेतृत्व करेंगे।

अखिलेश यादव के साथ मुलाकात के दौरान नीतीश ने कंधे पर हाथ रखकर फोटो खिंचवाई। लेकिन 2024 के चुनाव में अखिलेश यादव की भूमिका के सवाल पर उन्होंने अपनी तरफ से हंसते हुए रास्ता बंद कर दिया। उन्होंने स्वीकार किया कि केंद्रीय राजनीति की दृष्टि से यूपी बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य है। लेकिन साथ ही यह कहकर अखिलेश की दावेदारी के रास्ते बंद करने की कोशिश की कि अभी यह लोग यूपी का नेतृत्व करेंगे। यानी अभी राज्य की पॉलिटिक्स में ही रहेंगे। विपक्षी एकता की तरफ से 2024 के पहले कई नाम सामने आ रहे हैं। इनमें नीतीश फिर से सीएम बनने के बाद हाइलाइट हो गए हैं, जबकि अन्य दलों के सीनियर नेताओं की मौजूदगी के बावजूद यूपी के सबसे बड़ा राज्य होने की वजह से अखिलेश का नाम भी रह-रहकर सामने आ रहा है।

पीएम पद की कुर्सी पर निगाहें जमाए हुए नीतीश कुमार विपक्षी एकता की कवायद पर निकल पड़े हैं। वह बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन में हैं हीं। दिल्ली में उन्होंने आम आदमी पार्टी के सीएम अरविंद केजरीवाल, हरियाणा में इनेलो नेता ओमप्रकाश चौटाला, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, कर्नाटक के पूर्व सीएम एच डी कुमारस्वामी, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी राजा से मुलाकात की। इससे पहले तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने भी नीतीश से मुलाकात कर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था।

अखिलेश यादव बीते कुछ समय से केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर हैं। उनके निशाने पर केंद्र सरकार की योजनाएं आ गई हैं। महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे उठाकर केंद्र को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। इस बदलाव का कनेक्शन बिहार से है। बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदल कर आरजेडी गठबंधन में जुड़ने के बाद से अखिलेश भी खुद केंद्रीय राजनीति की तरफ मुड़ते दिख रहे हैं। इसका कारण है, यूपी में अगला विधानसभा चुनाव 5 साल बाद होना है। लोकसभा चुनाव 2024 में होना है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की हार के बाद से ऐसे ही उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश सपा को 5 सीटों पर जीत के आंकड़े से आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं हुए हैं। ऐसे में अखिलेश के सामने प्रदेश में सपा को फिर से ताकतवर बनाने के साथ-साथ केंद्र की राजनीति में दखल बढ़ाने की है।

बिहार में बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी के साथ गठबंधन कर सीएम बनने वाले नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर अखिलेश यादव से सवाल पूछा गया था। नीतीश कुमार के सीएम बनने के सवाल को अखिलेश टाल गए। अखिलेश ने 2024 में पीएम पद की उम्मीदवारी पर किए सवाल पर जवाब देते हुए कहा, ‘देखिए मैं इतनी बड़ी राजनीति तो नहीं करता हूं। लेकिन 2024 में देश को एक चेहरा जरूर मिलेगा। वह चेहरा कौन होगा, मैं नहीं जानता। लेकिन चेहरा मिलेगा जरूर।’ उन्होंने कहा, ‘बीजेपी को अगर रोका जा सकता है तो प्राथमिक तौर पर उत्तर प्रदेश से ही हो सकता है। यूपी में सपा ही बीजेपी का मुकाबला करेगी। क्योंकि यहां कई दल ऐसे हैं, जो बीजेपी से ही मिले हुए हैं। हमारे सामने चुनौती बड़ी है। 2014 में अगर यूपी में बीजेपी रूक गई होती तो देश में इनकी सरकार नहीं बनती।’

अखिलेश यादव के लिए यूपी में लोकसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। बाहरी से लेकर भीतरी चुनौती तक से उन्हें निपटना होगा। उन्हें अपने वोट बैंक को एकजुट करने के लिए एक बड़े मुद्दे की जरूरत है। दरअसल, यूपी चुनाव 2022 के दौरान अखिलेश से जुड़ने वाले पिछड़ा और दलित वोट बैंक का एक तबका केंद्र में मोदी, प्रदेश में अखिलेश का नारा लगा रहा था। मतलब, अखिलेश जहां लीड करेंगे, वहां यह तबका उनके साथ खड़ा रहेगा, लेकिन जब वह खुद ही ड्राइविंग सीट पर नहीं होंगे, छिटक जाएगा। परिणाम पिछले दो लोकसभा चुनाव में दिखता है। ऐसे में अखिलेश यह उम्मीद करके चल रहे हैं कि ममता, केसीआर और शरद पवार की तिकड़ी उनके नाम को आगे कर सकती है। इसलिए वह एक नैशनल लीडर के तौर पर अपनी छवि बनाने की कोशिश करते नजर आते हैं।

यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं। बिहार की 40 लोकसभा सीटों के मुकाबले दोगुनी। अखिलेश यादव की तैयारी सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की है। नीतीश कुमार अगर गठबंधन के तहत चुनावी मैदान में उतरते हैं तो 15-16 सीटों से अधिक लोकसभा चुनाव 2024 में जदयू के पाले में नहीं आएगा। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को ही आधार मानें और जदयू की 16 सीटों पर जीत को तय मान कर चलें तो भी विपक्ष के बहुमत के 273 के आंकड़े के पार करने के बाद नीतीश कुमार की 16 सीटों के दम पर उनकी पीएम पद पर उम्मीदवारी की संभावना कम ही है।

वहीं यूपी के वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी खुद चुनावी मैदान में उतरते हैं। इस स्थिति में अगर उनके सामने कोई विकल्प नहीं खड़ा होगा तो फिर दिक्कत दूसरी पार्टी की बढ़ेगी। अब अखिलेश और उनके समर्थकों के सामने चुनौती है कि विपक्षी एकता को बरकरार रखते हुए दावेदारी को मजबूती से कैसे पेश किया जाए। अखिलेश समर्थकों की ओर से सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव नेक्स्ट पीएम करके कैंपेन भी शुरू कर दिया गया है। यह वोट बैंक को जोड़े रखने की कवायद मानी जा रही है।

पीएम मोदी के खुद वाराणसी से चुनाव लड़ने का सीधा फायदा 2014 और 2019 में भाजपा को मिला है। आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की हार के बाद स्थापित वोट बैंक यादव और मुस्लिम में भी टूट देखने को मिली। अगर अखिलेश विपक्ष या तीसरा मोर्चा के पीएम उम्मीदवार घोषित होते हैं तो इस वोट बैंक को एकजुट करना संभव होगा। साथ ही, भाजपा से नाराज वोट बैंक को भी सपा अपने पाले में लाने में कामयाब हो सकती है।

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अखिलेश यादव भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिशों में जुट गए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने रणनीति तैयार करने वाले तीन नेताओं पर सारा दारोमदार छोड़ दिया है। ये तीन नेता हैं, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी। सपा अध्यक्ष ने राष्ट्रपति चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख के निर्णय के साथ खड़ा होकर साफ कर दिया है कि ममता बनर्जी के फैसलों को वे मानेंगे। अखिलेश यादव ने अभी यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि ये तीन नेता दिल्ली की रणनीति तय करेंगे। हालांकि, उन्होंने खुद की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर न तो हामी भरी है और न ही इनकार किया है।