सिंगापुर, कंबोडिया, श्रीलंका, थाइलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों के रामदल मंच पर सजीव करेंगे राम का जीवन
लखनऊ। राम सबके हैं। अलग-अलग रूपों में वह सबके लिए आदर्श हैं। परिवार, समाज, पुत्र, भाई, पति और राजा के रूप में। इन्हीं खूबियों के नाते वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनकी व्यापकता और स्वीकार्यता की भी यही वजह है। इसी नाते भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में राम अपने अलग-अलग स्वरूप में देखे जाते हैं।’सबके राम’ का यह स्वरूप अयोध्या में जीवंत हो रहा है। इसका जरिया बन रहे हैं देश और विदेश के वे कलाकार जो 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मद्देनजर राम के पूरे जीवन को मंच पर सजीव करेंगे। इसका सिलसिला शुरू भी हो गया है। मंगलवार को उत्तराखंड की रामलीला का उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल से अयोध्या में श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मद्देनजर सिंगापुर, कंबोडिया, श्रीलंका, थाइलैंड और इंडोनेशिया आदि देशों के कलाकारों को मंचन के लिए आमंत्रित किया गया है।
कई राज्यों के रामदल भी मंच पर प्रदर्शित करेंगे श्रीराम का उदात्त चरित्र
दुनिया के अलग-अलग देशों के अलावा देश के कई राज्यों यथा मध्य प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, कर्नाटक, सिक्किम, केरल, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर, लद्दाख और चंडीगढ़ के रामदल भी श्रीराम के उदात्त चरित्र को मंच पर सजीव करेंगे। यह सिलसिला शुरू हो गया है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी यह जारी रहेगा।
देश और दुनिया के 3500 कलाकारों का अयोध्या में होगा संगम
इस बाबत अयोध्या देश और दुनिया के करीब 3500 कलाकारों का संगम बनेगी। हर रोज अलग-अलग रामदलों के करीब 500 कलाकार मंच पर रामकथा का मंचन कर गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस की इन पंक्तियों, ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं, सुनहिं बहुिविधि सब संता’ को मूर्त रूप देंगे।
रामकथा के जरिए टूटेगी भाषा और मजहब की दीवार
दरअसल श्रीराम का चरित्र इतना आदर्श है कि कोई समाज इसकी अनदेखी कर ही नहीं सकता। यही वजह है कि भाषा और मजहब की सारी हदों से परे आज भी दुनिया के कई देशों में रामलीलाओं का मंचन होता है। मसलन 86 फीसद मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया और अंग्रेजी भाषी त्रिनिदाद में भी रामलीलाओं का मंचन होता है। बौद्धिस्ट देश श्रीलंका, थाइलैंड और रूस भी इसके अपवाद नहीं हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित माउंट मेडोना स्कूल में पिछले 40 वर्षों से जून के पहले हफ्ते में रामलीला का मंचन होता है। आजादी के पहले पाकिस्तान स्थित कराची के रामबाग की रामलीला मशहूर है। अब इसका नाम आरामबाग है और मैदान की जगह कंक्रीट के जंगल हैं। मान्यता है कि सीता के साथ शक्तिपीठ हिंगलाज जाते समय भगवान श्रीराम ने इसी जगह विश्राम किया था। भारत में वाराणसी की रामनगर, इटावा के जसवंतनगर, प्रयागराज और अल्मोड़ा की रामलीलाएं मशहूर हैं। इनका स्वरूप अलग-अलग हो सकता है, पर सबके केंद्र में राम ही हैं। मसलन भुवनेश्वर में ये साही जातरा हो जाती है तो चमाेली में रम्मण। कुछ जगहों पर तो रामायण के अन्य प्रसंगों मसलन धनुष यज्ञ, भरत मिलाप को भी केंद्र बनाकर आयोजन होते हैं।
भारत में 500 साल पुराना है रामलीलाओं का इतिहास
रही बात भारत की तो रामलीला का इतिहास 500 साल से भी पुराना है। हर दो-चार गांव के अंतराल पर अमूमन क्वार के एकम से लेकर एकादशी के दौरान रामलीला के आयोजन होते हैं। यहां के लोगों के लिए राम उनकी आस हैं, भरोसा और दाताराम हैं।
वह जो चाहेंगे वही होगा। ‘होइहि सोई जो राम रचि राखा।’ लिहाजा वर्षों पहले कठिन हालातों में गिरिमिटिया के रूप में जो लोग मॉरीशस, टोबैगो, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि देशों में गये, वह अपने साथ भरोसे के रूप में राम को ले गये। उनकी पहल से राममंदिर भी बने और रामलीलाएं भी शुरू हुईं। फिजी जैसे छोटे से देश में 50 से अधिक रामलीला मंडलियां हैं। टत्रिनिदाद का रामलीला मंदिर करीब 100 साल पुराना है।