अग्निपथ योजना को लेकर एक विवाद थमा नहीं था कि अब नई खबर सामने आ रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि भर्ती के लिए जाति और धर्म प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं। अब इसको लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर होते हुए सवाल कर रही है। हालांकि सेना की ओर से साफ तौर पर कहा गया है कि उम्मीदवारों के लिए जाति प्रमाण पत्र जमा करने की आवश्यकता और यदि आवश्यक हो तो धर्म प्रमाण पत्र हमेशा से मौजूद थे। इस संबंध में अग्निवीर भर्ती योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया है। बावजूद इसके विपक्ष की ओर से सरकार पर कई आरोप लगाए जा रहे हैं। यही कारण है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ तौर पर कहा है कि यह सिर्फ एक अफवाह है। आजादी के पहले से चली आ रही पुरानी व्यवस्था चल रही है। इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। पुरानी व्यवस्था को ही जारी रखा जा रहा है।
भाजपा का जवाब
दूसरी ओर भाजपा की ओर से आज इस मुद्दे को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में किया गया। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने अग्निपथ योजना को लेकर विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाया। संबित पात्रा ने कहा कि सेना में जाति-धर्म पर भर्तियां नहीं होती हैं। जानबूझकर बेवजह विवाद पैदा किया जा रहा है। इससे पहले भाजपा के अमित मालवीय ने कहा कि सेना ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक हलफनामे में स्पष्ट किया है कि वह जाति, क्षेत्र और धर्म के आधार पर भर्ती नहीं करती है। हालाँकि इसने प्रशासनिक सुविधा और परिचालन आवश्यकताओं के लिए एक क्षेत्र से आने वाले लोगों के समूह को एक रेजिमेंट में उचित ठहराती है।
संजय सिंह का सवाल
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी सवाल उठा दिए हैं। अपने ट्वीट के जरिए संजय सिंह ने दावा किया कि भारत के इतिहास में पहली बार ‘सेना भर्ती’ में जाति पूछी जा रही है। अपने ट्वीट में संजय सिंह ने लिखा कि मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है। क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना भर्ती के क़ाबिल नही मानते? भारत के इतिहास में पहली बार “सेना भर्ती “ में जाति पूछी जा रही है। मोदी जी आपको “अग्निवीर” बनाना है या “जातिवीर”। वहीं, भाजपा सांसद वरुण गांधी ने ट्वीट कर लिखा कि सेना में किसी भी तरह का कोई आरक्षण नहीं है पर अग्निपथ की भर्तियों में जाति प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है। क्या अब हम जाति देख कर किसी की राष्ट्रभक्ति तय करेंगे? सेना की स्थापित परंपराओं को बदलने से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा पर जो प्रभाव पड़ेगा उसके बारे में सरकार को सोचना चाहिए।