अमित त्यागी सरकारी मंथन समूह के मीडिया सलाहकार के साथ साथ कई संस्थानों के संपादकीय मंडल में शामिल हैं। आप देश मे वरिष्ठ स्तंभकारों में शुमार किये जाते हैं। विधि, राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर आपकी अच्छी पकड़ मानी जाती है।
मुम्बई (सरकारी मंथन ब्यूरो)। सरोज सुमन की गायिकी हो और अमित त्यागी के शब्द हों तो यह ऐसा संगम बनाते हैं कि संगीत का माधुर्य समुद्र की तरह ऊपर से शांत और भीतर से विराट बन जाता है। एक बार फिर इन दोनों की जुगलबंदी संगीत प्रेमियों को पसंद आ रही है। अमित त्यागी व सरोज सुमन की अनुपम जुगलबन्दी है… “जीवन-जीवन कब होता है”। सरकारी मंथन समूह इस गीत का मीडिया पार्टनर भी है। जीवन के संघर्षों के बीच सहनशीलता का संदेश देता यह गीत अमित त्यागी द्वारा एक दशक पूर्व लिखा गया था।
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अमित त्यागी व सरोज सुमन की अनुपम जुगलबन्दी
अभी लॉक डाउन के दौरान सरोज सुमन जी ने जब इसे सुना तो तुरंत चहक कर बोले कि इसे मैं गाऊंगा। चूंकि, गीत में हिंदी के क्लिष्ट शब्द थे जिनकी गायिकी आसान नही होती है। उसके बावजूद सरोज सुमन ने गीत के साथ न्याय किया है। सरोज सुमन का यह कार्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अमूमन संगीतकार आसान धुनों और शब्दों पर कार्य करना चाहते हैं जबकि सरोज सुमन सिर्फ बाज़ार में न उलझकर भारतीय जड़ों की मजबूती पर काम करने वाले संगीतकार दिखते हैं।
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अमित त्यागी सरकारी मंथन समूह के मीडिया सलाहकार के साथ साथ कई संस्थानों के संपादकीय मंडल में शामिल हैं। आप देश मे वरिष्ठ स्तंभकारों में शुमार किये जाते हैं। विधि, राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर आपकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। गीत पर सरोज सुमन का कहना है कि अमित जी के शब्दों में गहराई है। भाव प्रवणता है। इन सबसे बड़ी बात है कि अमित जी के लेखन में मौलिक चिंतन है। गीत का स्वत: प्रवाह धुन बनाना आसान कर देता है।
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वहीं अमित त्यागी कहते हैं कि वह सरोज सुमन के कम्पोजीशन के क़ायल हैं। जगजीत सिंह की तरह सरोज जी भी दिल के तारो को भीतर तक स्पर्श करते हैं। जिस तरह जगजीत सिंह ने भारत मे ग़ज़ल में पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का बेहतर प्रयोग किया है वैसे ही सरोज जी ने भी जीवन जीवन गाने मे एक अपनी ही शैली का अदभुत संगीत दिया है। इस गीत के पहले यह जोड़ी दोहे, आस का दीप, मन से बड़े बने और रामधुन का संगीतमय तोहफा श्रोताओं को दे चुकी है।