उत्तर प्रदेश में मदरसों का सर्वे होने के साथ ही अब लोगों की नजर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के अगले कदम पर है. सर्वे के दौरान सहारनपुर में 306 अवैध मदरसे पाए गए हैं. जांच में दारुल उलूम देवबंद भी एक अवैध मदरसा पाया गया है. हालांकि, सर्वे के बाद उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद का कहना है कि दारुल उलूम जैसे मदरसों को बोर्ड से मान्यता लेने की कोई जरूरत नहीं है.
सहारनपुर में कुल 754 मदरसे पंजीकृत
सहारनपुर के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बीएल गोंड का कहना है कि पकड़े गए 306 अवैध मदरसों की जानकारी प्रशासन को भेजी गई थी. दारुल उलूम देवबंद भी एक अवैध मदरसा है और छात्रवृत्ति और अन्य योजनाओं से वंचित है. मदरसे की स्थापना का वर्ष, इसे चलाने वाले समाज, मदरसे का नाम, उनकी आय का स्रोत जैसे प्रशासन द्वारा निर्धारित मापदंडों के आधार पर जांच की गई है. उस शिकायत के आधार पर प्रशासन जो भी निर्णय लेगा, उसे दर्ज किया जाएगा. सर्वे में यह रिपोर्ट सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद का कहना है कि दारुल उलूम जैसे मदरसों को बोर्ड से मान्यता लेने की कोई जरूरत नहीं है. सहारनपुर में कुल 754 मदरसे पंजीकृत हैं.
12 प्वाइंट के आधार पर हुआ सर्वे
जानकारी के मुताबिक, यूपी सरकार के एक सर्वे के मुताबिक प्रमुख इस्लामिक मदरसा दारुल उलूम देवबंद सहित सहारनपुर जिले के दूसरे 305 मदरसों को उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता हासिल नहीं है. जिन मदरसों को बोर्ड से मान्यता नहीं है, उन्हें सरकारी योजनाओं जैसे- छात्रवृत्ति, शिक्षकों के लिए वेतन आदि का लाभ नहीं मिलता है. न्यूज एजेंसी एएनआई की एक खबर के मुताबिक सहारनपुर के जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी भरत लाल गोंड ने बताया कि यह सर्वे मदरसे की स्थापना का वर्ष, इसे चलाने वाले समाज, मदरसे का नाम, उनकी आय का स्रोत जैसे प्रशासन द्वारा निर्धारित मापदंडों के आधार पर जांच की गई. सरकार ने 12 प्वाइंट तय किए थे, जिसके आधार पर मदरसों का सर्वे किया गया.
क्यों नहीं है मान्यता की जरूरत?
दरअसल, प्रदेश सरकार गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करा रही है. प्रदेश में 7500 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे मिले हैं. इनमें देवबंद का दारुल उलूम मदरसा भी है. रविवार को बोर्ड के चेयरमैन ने बयान जारी कर कहा कि दारुल उलूम देवबंद जो खुद देश भर में 4500 से ज्यादा मदरसों को मान्यता दे चुका हो उसकी निष्ठा व शिक्षा के ऊपर बहस करना सूरज को दीया दिखाने जैसा है. यहां यह जानना जरूरी है कि 1857 में जब आजादी की पहली लड़ाई लड़ी गई और अंग्रेजों ने शिक्षा के तमाम केंद्रों को बंद किया उसी के बाद दारुल उलूम, देवबंद की स्थापना हुई थी. डॉ. जावेद ने कहा कि 156 वर्षों से यह संस्था देश व दुनिया में अपनी शिक्षा और विचारधारा के लिए जानी जाती है. इतने बड़े कद की संस्था जो खुद मान्यता देकर शिक्षा को बढ़ावा दे रही हो उसे उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड से मान्यता लेने की कोई जरूरत नहीं है.
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बताया क्यों कराया जा रहा सर्वे?
मीडिया को दिये बयान में बोर्ड के चेयरमैन डॉ इफ्तिखार अहमद जावेद कहा कि इस सर्वे से प्रदेश में खुले नए मदरसों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है जिससे सरकार वहां पढ़ने वाले बच्चों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर उन्हें भी देश की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके. मदरसा बोर्ड ने पिछले सात वर्षों में किसी मदरसे को मान्यता नहीं दी है. इसलिए सर्वे के बाद गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को मान्यता देना भी एक उद्देश्य है.