उद्धव ठाकरे-एकनाथ शिंदे विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बड़ी बेंच को सौंपा गया मामला

उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के बीच शिवसेना पर कब्जे को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को मामला सौंप दिया है। अब 7 जजों की पीठ सुनवाई करेगी। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के रवैये पर भी सवाल उठाए। साथ ही उद्धव गुट को फौरी तौर पर कोई राहत नहीं दी।

अदालत ने क्या-क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं थी। इसे पार्टी के भीतर के विवाद को हल करने के लिए एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के विश्वास पर संदेह करने और फ्लोर टेस्ट करने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं थी। ऐसा संकेत नहीं मिला कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते थे। अगर यह मान भी लिया जाए कि विधायक सरकार से बाहर होना चाहते थे, तो उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंतरिक पार्टी के विवादों को हल करने के लिए फ्लोर टेस्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी या अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर फैसला करना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और अपना इस्तीफा दे दिया। इसलिए सबसे बड़े दल भाजपा के समर्थन से एकनाथ शिंदे को शपथ दिलाना राज्यपाल द्वारा उचित था।

उद्धव बोले, मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उद्धव ठाकरे ने कहा कि राज्यपाल का फैसला गलत था। मैंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दिया था। एकनाथ शिंदे और फडणवीस में नैतिकता है तो वह भी मेरी तरह इस्तीफा दें। कुछ लोग सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अदालत का फैसला देश का भविष्य तय करेगा।

संजय राउत बोले, 16 बागी विधायक अयोग्य

सुप्रीम कोर्ट द्वारा महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर फैसला सुनाए जाने के कुछ ही देर बाद शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत ने पाया है कि शिवसेना के उद्धव ठाकरे नीत खेमे के सुनील प्रभु आधिकारिक व्हिप (सचेतक) थे तो इस टिप्पणी के हिसाब से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 16 बागी विधायक अयोग्य साबित होते हैं। उन्होंने कहा कि जब सरकार बनाने की प्रक्रिया ही अवैध थी तो शिंदे सरकार अवैध हुई। राज्यसभा सदस्य राउत ने कहा कि अदालत की टिप्पणियों के अनुसार सुनील प्रभु शिवसेना के आधिकारिक सचेतक थे इसलिए बागी विधायक अयोग्य साबित हो जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पिछले साल 30 जून को महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए राज्यपाल द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बुलाना सही नहीं था। हालांकि अदालत ने पूर्व की स्थिति बहाल करने से इनकार करते हुए कहा कि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

क्या था मामला

शिवसेना में संकट की शुरुआत एकनाथ शिंदे द्वारा 40 विधायकों के साथ उद्धव के खिलाफ विद्रोह के ऐलान से हुआ था। जून 2022 में शिंदे ने विद्रोह किया था। विद्रोह के बाद जून 2022 बागी असम चले गए और फिर बीजेपी की मदद से सरकार बनाने का दावा पेश किया।

तब उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक नहीं लगाई, जिसके आदेश तत्कालीन राज्यपाल बीएस कोश्यारी ने दिए थे। 4 जुलाई को एकनाथ शिंदे ने फ्लोर टेस्ट जीता था। शिंदे खेमे में गए विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग को लेकर उद्धव गुट ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

चुनाव आयोग ने अपनी ओर से शिंदे गुट को बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का मूल धनुष और तीर चिन्ह दिया। उद्धव के गुट को मशाल का चुनाव चिह्न और नया नाम शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे दिया गया है। चुनाव आयोग ने बाद में एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना की मान्यता दे दी।