समलैंगिक शादी मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने समलैंगिक शादी की विरोध वाली केंद्र सरकार की अर्जी खारिज कर दी है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के सामने जब यह मामला आया तो केंद्र सरकार ने पीठ से कहा कि मामले के गुण-दोष में जाने से पहले कोर्ट को यह देखना चाहिए कि यह मामला सुनवाई योग्य है या नहीं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि हम पर विश्वास करिए। सुनवाई के दौरान हमारा नजरिया व्यापक होगा।
राज्यों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए-सिब्बल
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में राज्यों का पक्ष भी सुना जाना चाहिए। जबकि सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि अर्जी सुनवाई योग्य है या नहीं इस पर शुरुआती विरोध जताते हुए केंद्र सरकार ने अर्जी दायर की है।
केंद्र की आपत्तियों पर बाद में सुनवाई करेंगे-सीजेआई
मेहता ने पीठ से कहा कि वह मुद्दा जिस पर बहस होनी है। वह मुद्दा सामाजिक-कानूनी मान्यता देने के बारे में है। यह ऐसा विषय है जिस पर विचार करना जरूरी है कि इस बारे में निर्णय करने के लिए कोर्ट सही मंच है या संसद। इस पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वह केंद्र सरकार की आपत्तियों पर बाद में सुनवाई करेंगे।
पांच जजों की पीठ कर रही मामले की सुनवाई
इसके बाद प्रधान न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली अर्जियों पर सुनवाई शुरू की। इस पीठ में सीजेआई, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली एवं जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
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केंद्र इसलिए कर रहा विरोध
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘शहरी संभ्रांतवादी’विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए। केंद्र ने याचिकाओं के विचारणीय होने पर सवाल करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाहों की कानूनी वैधता ‘पर्सनल लॉ’ और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन को गंभीर नुकसान पहुंचाएगी।