भारतीय सेना लद्दाख में पूरी तरह से मुस्तैद है. यहां वो आधुनिक हथियार और तकनीक के साथ मोर्चा संभाले हुए है. सेना के पास आर्टिलरी गन, स्वार्म ड्रोन सिस्टम जैसे हथियार हैं जो भारत के दुश्मनों को करारा जवाब देने का काम करेंगी. यही नहीं लंबी दूरी के रॉकेट, दूर से संचालित हवाई प्रणाली और उच्च तकनीक के वाहन सेना के के पास हैं. चीनी सेना के साथ 30 महीने के गतिरोध जारी है. सेना के एक अधिकारी ने इस संबंध में जानकारी दी है कि लंबी दूरी के रॉकेट, दूर से संचालित एयर सिस्टम और उच्च-गतिशीलता वाले सुरक्षित वाहनों के साथ पहाड़ों में युद्ध के लिए हल्के टैंकों का डेवलपमेंट करने का काम जारी है.

भारतीय सेना बढ़ा रही है क्षमता
आगे अधिकार ने कहा कि एफआईसीवी और नये कार्बाइन खरीद भी की जा रही है. चीन के साथ विवादित सीमा पर अपनी क्षमता भारतीय सेना बढ़ा रही है ताकि पीएलए से मुकाबला किया जा सके. एलएसी पर चीन का मुकाबला करने के लिए सेना अपनी अलग रणनीति पर काम कर रही है जिसके फोकस में अपनी कैपीसिटी को बढ़ाना है. सेना के अधिकारी ने कहा कि हम अपनी सैन्य स्थिति को मजबूत करने के लिए कई तरह से काम कर रहे हैं. इसके लिए इमरजेंसी खरीदी की जा रही है. विभिन्न परियोजनाओं के लिए सरकार की ओर से भी सकारात्मक जवाब मिल रहा है और हथियारों की खरीदी को मंजूरी दी जा रही है. सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए स्वदेशीकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
मई 2020 में गतिरोध शुरू हुआ था
यदि आपको याद हो तो चीन के साथ भारत का मई 2020 में गतिरोध शुरू हुआ था जो अभी भी जारी है. एलएसी पर कई जगह दोनों देशों की सेनाओं के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी जिनमें से कुछ जगह बातचीत के द्वारा हल निकाला जा चुका है. द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए बातचीत का सहारा लिया जा रहा है. जहां-जहां दोनों देश के सेनाओं के बीच गतिरोध है वहां संघर्ष को कम करने के लिए ये जरूरी है कि सेना को पीछे हटाने का फैसला लिया जाए.
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चीन केवल ताकत का करता है सम्मान
सैन्य संचालन के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (रिटायर) ने इस संबंध में अपनी राय रखी है. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि चीन केवल ताकत का ही सम्मान करता है. भारत को अपनी शक्ति बढ़ाकर चीन की चुनौती को कम करने की जरूरत है. भारतीय फौज एलएसी पर नये-नये हथियारों से पूरी तरह से लैस नजर आ रही है. इसपर चीन की भी नजर है.
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