100 साल में पहली बार बिलासपुर सेंट्रल जेल में लिखी गयी ‘पुष्प की अभिलाषा’

 केंद्रीय जेल बिलासपुर के बैरक नंबर नौ में 100 साल पहले 1921 में आजादी के दीवानों में जोश भरने राष्ट्र कवि पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा…कविता लिखी थी। पांच जुलाई 1921 को उन्हें गिरफ्तार कर केंद्रीय जेल बिलासपुर में बंद कर दिया गया था। दरअसल वह दौर असहयोग आंदोलन का था।

पं.चतुर्वेदी युवाओं को प्रेरित करने के लिए 1921 जून को शहर के शनिचरी बाजार स्थित मंच पर ब्रिटिश गवर्नमेंट के खिलाफ जबरदस्त भाषण दिया था। इसके बाद जबलपुर चले गए थे, जहां से उनकी गिरफ्तारी हुई। पांच जुलाई 1921 को बिलासपुर स्थित केंद्रीय जेल में उन्हें बंद किया गया था। वे यहां एक मार्च 1922 तक रहे। यहीं उन्होंने पुष्प की अभिलाषा…की रचना की और ये कविता आजादी के दीवानों में जोश भरने वाली साबित हुई।

कैदी नंबर-1527 से थी पहचान

जेल में उनका रिकार्ड कैदी नंबर-1527, नाम माखनलाल चतुर्वेदी पिता नंदलाल, उम्र-32 वर्ष, निवास जबलपुर दर्ज है। उनका क्रिमिनल केस नंबर 39 था। एक मार्च 1922 को उन्हें केंद्रीय जेल जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया था।

कैदियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए केंद्रीय जेल बिलासपुर का विस्तार किया गया। इस वजह बैरक नंबर-नौ को भी तोड़ दिया गया है। जेल प्रशासन का कहना है कि जैसे ही निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। तब उनके नाम से बैरक नंबर-नौ को विशेष रूप से दर्जा देते हुए एक स्मारक का निर्माण किया जाएगा।

एक भारतीय आत्मा के नाम से था शिलालेख

जेल में एक भारतीय आत्मा के नाम से एक शिलालेख लगा हुआ था जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पांच जुलाई से लेकर एक मार्च तक की यादों को सहेज कर रखा गया था। शिलालेख में कविता पुष्प की अभिलाषा के कुछ अंश भी लिखे हुए हैं।