अमृत महोत्सव : मानसिक गुलामी से मुक्ति की जरूरत

देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में वीर सावरकर नगर में ‘अमृत महोत्सव समिति’ एवं ‘उत्तर प्रदेश नागरिक परिषद’ द्वारा ‘स्वराज का अमृत महोत्सव’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रधर्म पत्रिका के कार्यकारी निदेशक सर्वेशचंद्र द्विवेदी ने कहा आजादी मिलने के बाद देश का नेतृत्व जिनके हाथ में आया, उन्होंने हमारे ऊपर अंग्रेजियत का फंदा और अधिक मजबूती से कस दिया। अब हमें उस फंदे से मुक्त होने की आवश्यकता है। जब हम उक्त मानसिक गुलामी से आजाद हो जाएंगे, तभी हमारी आजादी सच्चे अर्थाें में पूर्ण होगी।

उन्होंने कहा कि 1854 में लाॅर्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था-‘भारत को भले ही कभी स्वतंत्र कर दिया जाय, लेकिन हम वहां की संस्कृति, भाषा, शिक्षा-प्रणाली आदि सब को अंग्रेजियत के रंग में इस प्रकार रंग देंगे कि वह हमेशा के लिए अंग्रेजों का गुलाम हो जाएगा।’। लाॅर्ड मैकाले की वह षड्यंत्रपूर्ण योजना पूरी तरह सफल हुई।

‘समाचार वार्ता’ के सम्पादक श्याम कुमार ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि देश की आजादी का प्रथम चरण वर्ष 1947 से पहले वर्ष 1945 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा पूर्ण कर लिया गया था। उन्होंने देश के एक हिस्से को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराकर वहां अपनी स्वदेशी सरकार स्थापित कर दी थी।

नेताजी की उस सरकार को विश्व के आठ देशों ने उसी समय मान्यता भी दे दी थी। नेताजी ने वह आजादी अंग्रेजों से भीख के रूप में नहीं, बल्कि रणकौशल द्वारा छीनकर प्राप्त की थी।

श्याम कुमार ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उस समय अंडमान व निकोबार द्वीपों के नाम ‘स्वराज द्वीप’ एवं ‘स्वाधीन द्वीप’ रखे थे। अब मोदी सरकार को नेताजी के प्रति श्रद्धांजलिस्वरूप उन द्वीपों के उक्त नाम औपचारिक रूप से मान्य कर देने चाहिए।

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इस अवसर पर भाग संघचालक सुभाष अग्रवाल, राजेश कुमार, सिद्धार्थ सिंह, ललित मोहन, दीपक जायसवाल, नगर कार्यवाहक कृष्ण मोहन, रमाकांत सिंह और चेतन प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।